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________________ 194] हिन्दी पद्यानुवाद तहेव संखडिं नच्चा, किच्चं कज्जं त्ति नो वए । तेगं वा वि वज्झित्ति, सुतित्थत्ति य आवगा । 13611 ना बोले मृतक विवाह हेतु, करना है जीमनवार उचित । ना चोर देख वध योग्य कहे, शुभ तीर्थ नदी को भी वर्जित ।। हिन्दी पद्यानुवाद I अन्वयार्थ-तहेव = उसी प्रकार । संखडिं= जीमनवार को। नच्चा = जानकर । किच्चं = यह काम । कज्जं त्ति = करणीय है । तेणगं = चोर को । वा वि = और भी । वज्झित्ति ( वज्झेत्ति) = यह वध्य है ऐसा । य = और । आवगा = नदी को । सुतित्थ त्ति ( सुतित्थि त्ति) = यह सरलता से तैरने योग्य है। नो व = साधु इस प्रकार नहीं बोले । भावार्थ-धान्य के समान ही यदि कभी गाँव में जीमनवार हो तो मृत्यु भोज आदि के जीमनवार को जानकर, यह गाँव का काम है, करने योग्य है, ऐसा कहना सावद्य वचन है, चोर को देखकर, यह फाँसी देने योग्य है ऐसा और नदियों को देखकर, यह आराम से तैरने योग्य हैं, ऐसे हिंसाकारी सावद्य वचन साधु नहीं बोले । संखडिं संखडिं बूया, पणियट्ठ त्ति तेणगं । बहुसमाणि तित्थाणि, आवगाणं वियागरे ।137।। जीमन को जीमनवार कहे, और चोर देख बोले यह जन । जीवन-पण से है स्वार्थ निरत, और नदी देख बोले तट सम ।। [दशवैकालिक सूत्र अन्वयार्थ-संखडिं = संखडी को यानी जीमनवार को । संखडिं = षट्काय जीवों की हिंसा रूप संखडी । बूया = कहे । तेणगं = चोर को । पणियट्ठत्ति = धन का अर्थी ऐसा कहे । आवगाणं = नदियों के सम्बन्ध में । बहुसमाणि तित्थाणि = बहुत समान तीर्थ तटवाली हैं। वियागरे = ऐसा कथन करे । भावार्थ-जीमन षट्काय जीवों के प्राण हरण करने वाला होने से उसे संखडि कहे। चोर को अर्थ के लिये अपने जीवन को बाजी पर लगाने वाला कहे और नदियों को देखकर इनके तट तीर्थ (किनारे) सम हैं, साधु ऐसी निर्दोष भाषा बोले । तहा नईओ पुण्णाओ, कायतिज्ज त्ति नो वए। नावाहिं तारिमाओ त्ति', पाणिपिज्ज त्ति नो वए । 1 38 ।। 1. तरिमाउ त्ति, तारिमाउ ति पाठान्तर
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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