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________________ 186] [दशवैकालिक सूत्र ___अन्वयार्थ-अज्जए = हे दादा । पज्जए = हे परदादा । वा वि = अथवा । वप्पो = हे पिताजी। चुल्लपिउ = हे चाचाजी। त्ति य = और फिर । माउलो = हे मातुल । भाइणिज (भाईणेज्ज) = हे भानजे । त्ति = ऐसे ही। पुत्ते = हे पुत्र । य = और । णत्तु णिय त्ति = हे दौहित्र, हे पौत्र, इस प्रकार के सांसारिक सम्बन्ध के शब्दों से न पुकारे। भावार्थ-साधु संसार के संयोग सम्बन्धों को त्याग चुका है। अत: वह बाप, दादा, परदादा, नाना, चाचा, बाबा, भाई, मामा, पुत्र, मित्र, दौहित्र आदि सम्बन्धों से किसी को पुकारेगा-तो मोह भाव की जागृति का होना सम्भव है। फिर सुनने वाले भी सम्बन्ध सुनकर राग करेंगे । इसलिये आत्मार्थी सन्त उनको संसारी सम्बन्ध अथवा हल्के नामों से नहीं पुकारे । किन्तु सामान्य भाई बहन अथवा श्रावक के नाम से पुकारे, यही अधिक हितकर है। हे भो हलित्ति, अण्णित्ति, भट्टे सामिय गोमिए। होल गोल वसुलित्ति, पुरिसं णेवमालवे ।।19।। हिन्दी पद्यानुवाद हे भो, हल और अन्न भट्टा, हे गोमिक होल गोल स्वामी। मुनि के लिये वसूल आदि, नर को कहना न उचित कभी।। अन्वयार्थ-हे भो (हो) हलित्ति (हलेत्ति) = हे हले । अण्णित्ति (अण्णेत्ति) = हे अन्ने । भट्टे (भट्टा) = हे भट्ट । सामिय = हे स्वामिन् । गोमिए = हे गोमिक । होल = हे होल । गोल = हो गोले । वसुलित्ति = हे दुराचारी । एवं = इस प्रकार हीनता सूचक शब्दों से । पुरिसं = पुरुष को साधु । ण आलवे = नहीं बोले। भावार्थ-फिर हे हले ! हे अन्ने ! हे भट्ट ! हे स्वामिन् ! हे ग्वाले ! हे होल ! हे गोल ! हे दुराचारी ! हे दस नम्बरी ! इस प्रकार किसी पुरुष को साधु नहीं बोले । कैसे बोले यह आगे बताया गया है णामधिज्जेण णं बूया, पुरिस गुत्तेण वा पुणो। जहारिहमभिगिज्झ, आलविज्ज लविज्ज वा ।।20।। हिन्दी पद्यानुवाद लेकर नाम पुरुष का अथवा, कर उसका गोत्रोच्चारण। पदपूर्वक एक अनेक बार, उसको सम्बोधित करे श्रमण ।। अन्वयार्थ-णं = उसको । णामधिज्जेण (णामधेज्जेण) = नाम लेकर । वा = अथवा । पुणो
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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