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________________ 180] [दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद अत: वहाँ जाऊँगा उसको, बोलूँगा अमुक कार्य होगा। अथवा मैं कार्य करूँगा वह, या वह मुनि ऐसा कर लेगा।। अन्वयार्थ-सत्य के आकार वाला भी मृषा वचन बन्ध का कारण होता है-तम्हा = इसलिये। गच्छामो = हम कल जाएंगे ही। वक्खामो = बोलेंगे ही। वा = अथवा । अमुगं णे = अमुक कार्य । भविस्सइ (भविस्सई) = हमारा होगा ही। वा णं = अथवा । अहं = मैं । करिस्सामि = उस कार्य को करूँगा ही। वाणं = अथवा । एसो = यह उस कार्य को । करिस्सइ (करिस्सई) = अवश्य करेगा ही। एवमाइ उ जा भासा, एस कालम्मि संकिया। संपयाई अमढे वा, तं पि धीरो विवज्जए ।।7।। हिन्दी पद्यानुवाद भूत भविष्यत् वर्तमान में, सन्देह भरी जो भी भाषा। मुनि धीर त्याग दे उसको भी, जो भी होए व्यवहृत भाषा ।। अन्वयार्थ-एवमाइउ = इस प्रकार की । जा = जो । भासा = भाषाएँ । एस कालम्मि = भविष्य काल के लिये । संकिया = शंकाजनक हो । वा = अथवा । संपयाईयम? = वर्तमान तथा भूतकाल का अर्थ शंका युक्त हो । धीरो = धीर पुरुष । तं पि = ऐसा वचन भी। विवज्जए = नहीं बोले। भावार्थ-(गाथा 6 तथा 7) सत्य के आकार वाला कथन भी पाप-बन्ध का कारण होता है। इस लिये हम कल जायेंगे ही, अगले दिन व्याख्यान करेंगे ही अथवा यह कार्य होगा ही, मैं उस कार्य को करूँगा ही अथवा वह इस कार्य को अवश्य करेगा ही, इस प्रकार भविष्य काल में जो शंका जनक हो अथवा वर्तमान और भूत में जिसका अर्थ शंकित हो, धीर पुरुष को ऐसा वचन नहीं बोलना चाहिये । निश्चयकारी भाषा बोलने में भविष्य में वैसा नहीं होने पर लोक में हँसी और स्वयं के मन में खेद तथा आकुलता उत्पन्न होती है। अत: सत्यव्रती को ऐसे निश्चयकारी वचन नहीं बोलने चाहिये। अइयम्मि य कालम्मि, पच्चुप्पण्णमणागए। जमटुं तु न जाणिज्जा, एवमेयं ति नो वए।।8।। हिन्दी पद्यानुवाद भूत भविष्यत् वर्तमान का, हो जिसका कुछ ज्ञान नहीं। उस अनजाने के बारे में, निश्चय की भाषा कहे नहीं।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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