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________________ 156] [दशवैकालिक सूत्र पुढविकायं विहिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए । तसे य विविहे पाणे, चक्खुसे य अचक्खुसे ।।28।। हिन्दी पद्यानुवाद पृथ्वीकायिक हिंसा करते, आश्रित का भी वध करता है। बस स्थावर अथवा सूक्ष्म स्थूल, चाक्षुष बिन चाक्षुष हरता है।। अन्वयार्थ-पुढविकायं = पृथ्वीकाय के जीवों की। विहिंसंतो = हिंसा करने वाला । तयस्सिए = तदाश्रित यानी पृथ्वी के आश्रित । चक्खुसे = चाक्षुष । य = और । अचक्खुसे = अचाक्षुष । विविहे = विविध प्रकार के । तसे य पाणे = त्रस और स्थावर प्राणियों की। हिंसइ उ = हिंसा कर लेता है। भावार्थ-पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करते समय केवल पृथ्वीकाय के जीवों की ही हिंसा नहीं होती, बल्कि तदाश्रित अन्य अनेक चाक्षुष एवं अचाक्षुष त्रस और स्थावर जीवों की भी हिंसा हो जाती है। पृथ्वी के आश्रय में छोटे-बड़े कीड़े, जीव-जन्तु आदि छिपे रहते हैं, उनका और पृथ्वी के छेदन-भेदन करते समय तदाश्रित जलकाय, वनस्पतिकाय और वायुकाय के जीवों का आरम्भ भी सहज ही हो जाता है। तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गइवड्ढणं । पुढविकायसमारंभं, जावज्जीवाए वज्जए ।।29।। हिन्दी पद्यानुवाद दुर्गति वर्द्धक यह दोष कहा, इसलिये जान करके मन से । पृथ्वीकायिक का आरम्भ तज, जीवन भर शुद्ध हृदय तन से ।। अन्वयार्थ-तम्हा = इसलिये । दुग्गइवड्ढणं = नरकादि दुर्गति को बढ़ाने वाले । एयं = इस । दोसं = दोष को । वियाणित्ता = जानकर साधु । पुढविकाय समारंभं = पृथ्वीकाय के आरम्भ (की हिंसा) का। जावज्जीवाए = जीवन भर के लिये । वज्जए = वर्जन करता है। भावार्थ-पृथ्वीकाय की विराधना करना दोष है । अत: यह दुर्गति को बढ़ाने वाली है। यह जानकर कल्याणार्थी साधु पृथ्वीकाय के जीवों के आरम्भ का जीवन भर के लिये वर्जन कर दे। (मन्दमति लोग धर्म, अर्थ और काम के लिये हिंसा करते हैं वे दुर्गति में जाते हैं। जैसा कि आचारांग सूत्र में कहा है-“धम्मा, अत्था, कामा हणंति......” आदि । महाव्रती साधु सनिमित्तक या अनिमित्तक पृथ्वीकाय की हिंसा नहीं करते । इसकी विस्तृत जानकारी के लिये आचारांग सूत्र का प्रथमाध्ययन और इसी दशवैकालिक सूत्र का चतुर्थ धर्म-प्रज्ञप्ति नामक अध्ययन जिज्ञासु के लिये द्रष्टव्य है।)
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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