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________________ छठा अध्ययन महाचार कथा उपक्रम छठे अध्ययन का नाम महाचार कथा है। तीसरे अध्ययन की अपेक्षा इसमें आचार-स्थान का विस्तार से वर्णन होने से इसका नाम महाचार कथा है। जैसाकि नियुक्तिकार ने कहा है-“जो पुव्विं उद्दिट्ठो, आयारो सो अहीणमइरित्तो । सच्चेव य होइ कहा, आयारकहाए महईए । नि. 245" तीसरे अध्ययन में निषेध पक्ष में अनाचारों का कथन किया गया है। किन्तु इस अध्ययन में आचार के 18 स्थानों का सहेतुक वर्णन किया गया है। हिंसा-मृषा-अदत्त त्याग, मैथुन विरति, परिग्रह त्याग, रात्रि-भोजन-विरमण आदि को दोदो, तीन-तीन गाथाओं द्वारा हेतपूर्वक समझाया गया है। छोटे-बड़े सब साधुओं के लिये इन 18 स्थानों का पालन करना आवश्यक बतलाया है। श्रमणाचार को संक्षेप में सरल ढंग से लिखकर सूत्रकार ने सर्व साधारण पाठकों के लिए बड़ा उपकार किया है। श्रमण जीवन की चर्या में इन 18 स्थानों में जैन साधु के आचार का सम्पूर्ण प्रतिपादन हो जाता है। श्रमण के आचार गोचर को भयंकर कहा है। यहाँ सूत्रोक्त 18 स्थानों में साध्वाचार की संक्षिप्त झांकी प्रस्तुत की गई है, जो इस प्रकार है ___ “वयछक्कं कायछक्कं, अकप्पो गिहिभायणं । पलिअंक निसेज्जा य सिणाणं सोभवज्जणं ।” (नि. 268) हिंसा, मृषा, अदत्त, मैथुन, परिग्रह और रात्रि भोजन के विरमण रूप 6 व्रत के 6 स्थान । पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रसकाय की रक्षा के 6 स्थान, इस तरह 12 । सदोष आहार, उपाश्रय, वस्त्र और पात्र का त्याग 13, गृहस्थ के भाजन में आहार-पानी वर्जन 14, पर्यंक और गृहस्थ के यहाँ बैठने का त्याग 15-16 स्नान त्याग 17, शरीर और वस्त्रादि की सजावट करना, शोभा बढ़ाना इन दोनों का त्याग 18 । ये 18 स्थान श्रमण-निर्ग्रन्थ के लिये वर्जनीय हैं । इस प्रकार पंच महाव्रत से लेकर शरीर की विभूषावर्जन तक के मूलोत्तर गुणरूप सम्पूर्ण साधु आचार का वर्णन होने से इस अध्ययन को “महाचार कथा' कहा गया है। नियुक्तिकार ने इसका दूसरा नाम ‘धर्मार्थकाम' भी बतलाया है। अध्ययन की चतुर्थ गाथा में साधु को 'धर्मार्थकाम' कहा गया है। जैसे-'हंदि धम्मत्थकामाणं' मोक्ष रूप धर्म के अर्थ की कामना करने वाले निर्ग्रन्थों का आचार इसमें बतलाया गया है। इसी बात को नियुक्तिकार निम्न शब्दों में कहते हैं
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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