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________________ 2] हिन्दी पद्यानुवाद अन्वयार्थ-जहा = जैसे। दुमस्स = वृक्ष के । पुप्फेसु = फूलों पर । भमरो = भँवरा । रसं = रस को । आवियइ = मर्यादा से पीता है। य पुप्फं = और फूल को । न किलामेइ = पीड़ा उत्पन्न नहीं करता है । य = और। सो = वह । अप्पयं = अपने आपको । पीणेइ = तृप्त कर लेता है । हिन्दी पद्यानुवाद जैसे तरुवर के फूलों पर, मधुकर रस को आ पीता है। वह तृप्त करे अपने तन को, सुमनों को कष्ट न देता है ।। भ्रमर नहीं खेती करता, उद्यान नहीं लगवाता 1 सहज खिले तरु फूलों से, निज तन का पोषण करता है ।। भावार्थ-जैसे भँवरा फूलों पर प्राकृतिक मर्यादा से रसपान करके अपना पोषण कर लेता है और फूलों को पीड़ा उत्पन्न नहीं होने देता है, अहिंसक जनों के आहार ग्रहण करने का भी ऐसा ही तरीका होना चाहिए। अतः साधु अनेक घरों से थोड़ा-थोड़ा आहार ग्रहण करता है, जिससे कि उसका भी अच्छी तरह निर्वाह हो जाय और दूसरों के लिये भी अपने आहार में से थोड़ा सा दे देना कष्टदायक न हो । एमे ए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो' । विहंगमा व पुप्फेसु, दाण भत्तेसणारया ' ।।3॥ 1. साहूणो पाठान्तर 2. — भत्तेसणे रया पाठान्तर । [दशवैकालिक सूत्र इस तरह श्रमण और मुक्त, लोक में चलते हैं जो साधु सुजन । फूलों पर अलि सम रसकामी, बनकर करते भिक्षा अन्वेषण ।। I अन्वयार्थ-एमे ए = ऐसे ये । समणा = श्रमण-तपस्वी । मुत्ता जे = बहिरंग और अंतरंग परिग्रह से जो मुक्त हैं। लोए = लोक में | साहुणो = साधु । सन्ति = हैं । पुप्फेसु = फूलों पर । विहंगमा व = भँवरे के समान वे । दाण-भत्तेसणा = दाता द्वारा दिये गये निर्दोष प्रासुक आहार- पानी की एषणा में । रया = रत रहते हैं । भावार्थ-जो लोक में आरम्भादि से मुक्त साधु होते हैं, वे फूलों पर भँवरे के समान, दाता द्वारा दि गये निर्दोष आहार की गवेषणा में तत्पर रहते हैं। अच्छे साधु प्रेम पूर्वक दी गई निर्दोष भिक्षा ही ग्रहण करते हैं, अपने आहार-विहार में किसी को कष्ट नहीं देते, और न किसी प्रकार के संग्रह की ही भावना रखते हैं, यही उनकी विशेषता है। उत्थानिका -इसी को लक्ष्य में रखकर शिष्य गुरु के समक्ष प्रतिज्ञा करते हैं वयं च वित्तिं लब्भामो, न य कोइ उवहम्मइ । अहागडे रीयंते, पुप्फेसु भमरा जहा ।। 4 ।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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