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________________ 124] [दशवैकालिक सूत्र __भावार्थ-इसमें बताया गया है कि जो साधु भिक्षा के काल का बिना ध्यान किये असमय में भिक्षा को जाता है तब अगर भिक्षा नहीं मिलती है तो वह अपने आप को व्यर्थ कष्ट दिया ऐसा समझता है और गाँव की निन्दा करता है। सइ काले चरे भिक्खू, कुज्जा पुरिसकारियं । अलाभु त्ति ण सोइज्जा, तवोत्ति अहियासए ।।6।। हिन्दी पद्यानुवाद मुनि उचित समय में भिक्षा हित, जाने का पुरुषार्थ करे। अलाभ में नहीं सोच करे, तप मान भूख को सहन करे ।। अन्वयार्थ-भिक्खू = साधु । काले = भिक्षा का समय । सइ = होने पर । चरे = भिक्षा के लिये जावे और । पुरिसकारियं = पुरुषार्थ । कुज्जा = करे। अलाभुत्ति = भिक्षा का लाभ नहीं होने से । ण सोइज्जा = चिन्ता नहीं करे किन्तु । तवोत्ति (तवुत्ति) = आज मेरे तप होगा, ऐसा विचार कर । अहियासए = क्षुधा परीषह को शान्ति से सहन करे। भावार्थ-भिक्षा का समय होने पर जो साधु गोचरी को जाता है और पुरुषार्थ करता है, वह अलाभ होने पर शोक नहीं करता, किन्तु आज मेरे तप हो जायगा, ऐसा सोचकर क्षुधा आदि परीषह को सहन करता है। तहेवुच्चावया पाणा, भत्तट्ठाए समागया। तं उज्जुयं ण गच्छिज्जा, जयमेव परिक्कमे ।।7।। हिन्दी पद्यानुवाद ऊँचे नीच प्राणी वैसे, यदि अशन-पान हित हों आए। ना जाए उनके आगे हो, यतना से गति करता जाए।। अन्वयार्थ-तहेव = इसी प्रकार, कभी । उच्चावया = उच्च नीच । पाणा = प्राणी । भत्तट्ठाए = अपने दाना पानी के लिये । समागया = आये हुए हों । तं = तो उनके । उज्जुयं = सामने । ण गच्छिज्जा = नहीं जावे, किन्तु । जयमेव = यतना पूर्वक । परिक्कमे (परक्कमे) = गमन करे। भावार्थ-कभी उच्च-हंस, गाय आदि अवच-काक ,कुत्ते आदि छोटे-बड़े पशु-पक्षी दाना-पानी के लिये आये हुए हों, तो साधु उनके सामने से नहीं जावे, किन्तु यतना पूर्वक एक तरफ से गमन करे ताकि उनको अन्तराय नहीं पड़े।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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