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________________ 118] [दशवकालिक सूत्र के निमित्त । साहुदेहस्स धारणा = एवं साधुओं के देह धारण के लिये । साहूण = साधुओं को । असावज्जा = कैसी-निर्दोष । वित्ती = वृत्ति । देसिया = बतलाई है। भावार्थ-कायोत्सर्ग में स्थित मुनि सोचता है कि अहो! परम दयालु जिनेश्वर देवों ने मोक्ष-साधन में सहायक साधु के शरीर के धारण एवं पोषण के लिये कैसी निर्दोष वृत्ति बतलाई है कि साधु शरीर का भरणपोषण भी करले और पाप के दोष से भी बचा रहे। णमुक्कारेण पारित्ता, करित्ता जिणसंथवं । सज्झायं पट्ठवित्ताणं, वीसमेज्ज खणं मुणी ।।93।। हिन्दी पद्यानुवाद णमुक्कार का पद कहकर, मुनि कायोत्सर्ग समाप्त करे । कर जिनस्तव स्वाध्याय करे, फिर क्षण भर का विश्राम करे ।। अन्वयार्थ-णमुक्कारेण = नवकार 'नमो अरिहंताणं' पद से । पारित्ता (पारेत्ता) = कायोत्सर्ग का पालन करे, फिर । जिण संथवं = जिनेन्द्र स्तुति अर्थात् चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति रूप लोगस्स का। करित्ता = पाठ करे । सज्झायं = स्वाध्याय का । पट्ठवित्ताणं (पट्टवेत्ताणं) = पाठ उच्चारण करके । मुणी = मुनि । खणं = क्षण भर के लिये । वीसमेज्ज = विश्राम करे। भावार्थ-कायोत्सर्ग में चिन्तन के पीछे मुनि “नमो अरिहंताणं' बोलकर कायोत्सर्ग को पूर्ण करे । फिर जिनेन्द्र स्तुति रूप लोगस्स के पाठ का उच्चारण करे और स्वाध्याय का (प्रस्थापन) प्रारम्भ कर क्षण भर के लिये विश्राम करे। वीसमंतो इमं चिंते, हियमटुं लाभमट्ठिओ। जइ मे अणुग्गहं कुज्जा, साहू हुज्जामि तारिओ ।।94।। हिन्दी पद्यानुवाद लाभार्थी विश्राम घड़ी में, चिन्तन हितकारी करले। सोचे, भवसागर पार करूँ, यदि करें अनुग्रह मुनि कुछ ले।। अन्वयार्थ-लाभमट्ठिओ = ज्ञानादि के लाभ का अर्थी । साहू = साधु । वीसमंतो = विश्राम करता हुआ। हियमढे = आत्म-हित के लिये । इमं = ऐसा। चिंते = सोचे कि। जइ = यदि अन्य साधुजन । मे = मेरे पर । अणुग्गहं = मेरे द्वारा भिक्षा में लाये गये आहार में से कुछ ग्रहण करने का अनुग्रह । कुज्जा = करें तो मैं । तारिओ = भव जल से पार । हुज्जामि (होज्जामि) = हो जाऊँ।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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