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________________ [95 पाँचवाँ अध्ययन] अन्वयार्थ-भुंजमाणाणं = खाने वाले । दुण्हं (दोण्हं) = दो व्यक्तियों में । तत्थ = वहाँ । एगो = एक व्यक्ति । निमंतए तु = निमन्त्रण दे, तो। दिज्जमाणं = साधु दिये जाने वाले आहार को। ण = नहीं। इच्छिज्जा (इच्छेज्जा) = चाहे । से = उस दूसरे एक के । छंदं = भाव को । पडिलेहए = देखेसमझे। भावार्थ-जहाँ पर दो व्यक्ति साथ में खाना खा रहे हों, उन में से एक निमन्त्रित करे तो साधु उस आहार को लेने की इच्छा नहीं करे । वह दूसरे व्यक्ति की भावना देखे । बिना दूसरे की भावना के, सम्मिलित भोजन में से आहार ग्रहण नहीं करे । दुण्हं तु भुंजमाणाणं, दो वि तत्थ निमंतए। दिज्जमाणं पडिच्छिज्जा, जं तत्थेसणियं भवे ।।38।। हिन्दी पद्यानुवाद दो खाने वाले यदि मुनि को, दोनों साथ-साथ आमन्त्रण दे। उनमें जो कल्पनीय जाने, दाता से वह स्वीकार करे ।। अन्वयार्थ-भुंजमाणाणं = खाने वाले । दुण्हं = दो व्यक्तियों में से । दोवि = वे दोनों, इच्छा से। तत्थ = वहाँ । निमंतए तु = निमन्त्रण दे तो । दिज्जमाणं = दिये जाने वाले भोजन में । तत्थं जं एसणियं = वहाँ जो निर्दोष । भवे = वस्तु हो । पडिच्छिज्जा = उसको मुनि ग्रहण करे। भावार्थ-दो व्यक्ति साथ-साथ भोजन कर रहे हों, उनमें से दोनों मुनि को निमन्त्रित करें तो दिये जाने वाले आहार में से जो निर्दोष हो, उसे मुनि ग्रहण कर सकते हैं। गुठ्विणीए उवण्णत्थं, विविहं पाणभोयणं । भुंजमाणं विवज्जिज्जा, भुत्तसेसं पडिच्छए ।।39।। हिन्दी पद्यानुवाद गर्भवती के पोषण हित में, निर्मित विविध पान-भोजन । खाती हो तो वर्जित कर दे, भुक्त-शेष मुनि करे ग्रहण ।। अन्वयार्थ-गुव्विणीए = गर्भवती के लिये । विविहं = अनेक प्रकार का । पाण भोयणं = आहार-पानी । उवण्णत्थं = बनाया गया पदार्थ । भुंजमाणं = उसके द्वारा खाया जाता हो तो । विवज्जिज्जा = छोड़ दें। भुत्तसेसं = खाने से बचा हो तो । पडिच्छए = ग्रहण करे। भावार्थ-गर्भवती के लिये जो अनेक प्रकार का आहार-पानी बनाया गया है। वह यदि गर्भवती खा
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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