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________________ [91 पाँचवाँ अध्ययन] हिन्दी पद्यानुवाद भिक्षा लाने वाली यदि, दे गिरा वहाँ पर वह भोजन । उस देने वाली से बोले, मुनि कल्प्य न यह मुझको भोजन ।। अन्वयार्थ-तत्थ = वहाँ घर में । आहरंती = आहार लाने वाली बहन । सिया = कदाचित् । भोयणं = आहार-पानी को । परिसाडिज्ज = नीचे गिरा दे तो। दितियं = देने वाली को । पडियाइक्खे = निषेध की भाषा में कहे कि । तारिसं = इस प्रकार का आहार-पानी । मे = मुझे । ण कप्पइ = ग्रहण करना नहीं कल्पता है। भावार्थ-गृहस्थ के घर में आहार देने वाले दाता/दात्री कदाचित् आहार लाते हुए, भोज्य पदार्थ के अंश को नीचे गिरा दे तो साधु उसकी भिक्षा ग्रहण नहीं करे, किन्तु दाता-दात्री से कह दे कि मुझको ऐसा परिशाटित भोजन ग्रहण करना नहीं कल्पता (अर्थात् मुझे यह आहार नहीं लेना है)। संमद्दमाणी पाणाणि, बीयाणि हरियाणि य। असंजमकरिं णच्चा, तारिसं परिवज्जए ।।29।। हिन्दी पद्यानुवाद सम्मर्दन करती प्राणी का, बहु-बीज वनस्पति कायिक का। यह जान असंयम वाली है, मुनि करे त्याग उस दात्री का ।। अन्वयार्थ-पाणाणि = विकलेन्द्रिय प्राणियों को । बीयाणि = धान्य के बीजों को । य = और। हरियाणि = हरे पत्ते आदि को । संमद्दमाणी = पैरों से कुचलती हुई भिक्षा देवे तो। असंजमकरं = असंयम करने वाली दात्री को । णच्चा = जानकर । तारिसं = वैसे आहार का । परिवज्जए = साधु वर्जन कर दे। भावार्थ-किसी जगह देने वाली दात्री कीट-पतंगादि प्राणियों, धान्य के बीजों और हरित पत्ते आदि को पैरों से मर्दन करती-कुचलती हुई आहार दे तो उसको असंयम करने वाली जानकर साधु वैसा आहार ग्रहण नहीं करे। साहट्ट णिक्खिवित्ताणं, सचित्तं घट्टियाण य । तहे व समणट्टाए, उदगं संपणुल्लिया ।।30।। हिन्दी पद्यानुवाद संहरण साधु-हित में करके, निक्षेप सचित्त को छूकर के। वैसे सचित्त अप्कायिक को, उधर से इधर हिलाकर के।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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