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________________ तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ] 61 } अहं खलु द्वारावत्याः नगर्या : महता महता राज्याभिषेकेण अभिसेक्ष्यामि । ततः खलु सः गजसुकुमालः कुमारः कृष्णेन वासुदेवेन एवमुक्तः सन् तूष्णीकः संतिष्ठते । अन्वयार्थ - तए णं से गयसुकुमाले कुमारे = तदनन्तर वह गजसुकुमाल कुमार, अरहओ अरिट्टणेमिस्स = भगवान श्री अरिष्टनेमि, अंतियं धम्मं सोच्चा = के पास धर्म कथा सुनकर, जं नवरं विरक्त होकर बोले भगवन् !, अम्मापियरं आपुच्छामि = माता-पिता को पूछकर मैं आपके पास व्रत ग्रहण करूँगा, जहा मेहे = मेघकुमार की तरह, जं नवरं महिलियावज्जं जाव = विशेष रूप से महिलाओं को छोड़कर यावत्, वड्डियकुले = माता-पिता ने उन्हें वंशवृद्धि के बाद दीक्षा ग्रहण करने को कहा। = तए णं से कण्हे वासुदेवे = तब श्री कृष्ण वासुदेव ने गजसुकुमाल की, इमीसे कहाए लद्धट्टे समाणे = वैराग्यरूप यह कथा सुनी तो, जेणेव गयसुकुमाले कुमारे = जहाँ गजसुकुमाल कुमार था, तेणेव उवागच्छइ = वहाँ आये, उवागच्छित्ता गयसुकुमालं कुमारं = पास आकर गजसुकुमाल कुमार का, आलिंगइ = स्नेह से आलिंगन किया, आलिंगित्ता = आलिंगन कर उसे अपनी, उच्छंगे निवेसेइ = गोद में बैठा लेते हैं, निवेसित्ता एवं वयासी - = गोदी में बैठाकर इस प्रकार कहा- तुमं ममं सहोयरे कणीयसे भाया = तू मेरा सहोदर छोटा, भाई है, तं मा णं देवाणुप्पिया ! = इस कारण हे देवानुप्रिय !, इयाणिं अरहओ अरिट्ठणेमिस्स = इस समय भगवान नेमिनाथ के, अंतियं मुंडे जाव पव्वयाहि = पास मुण्डित होकर यावत् दीक्षा, ग्रहण मतकर । अहण्णं बारवईए नयरीए = मैं तुमको द्वारावती नगरी, महया महया रायाभिसेएणं = में बड़े समारोह के साथ राज्याभिषेक से, अभिसिंचिस्सामि = अभिषिक्त करूँगा।" तए णं से गयसुकुमाले कुमारे = तदनन्तर वह गजसुकुमाल कुमार, कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे = कृष्ण वासुदेव के इस प्रकार कहने पर, तुसिणीए संचिट्ठ मौन रहा । = भावार्थ- प्रभु का धर्मोपदेश सुनकर श्री कृष्ण तो लौट गये, किन्तु वह गजसुकुमाल कुमार भगवान नेमिनाथ के पास धर्म-कथा सुनकर संसार से विरक्त हो प्रभु नेमिनाथ से इस प्रकार बोले-“हे भगवन् ! मातापिता को पूछकर मैं आपके पास श्रमणधर्म ग्रहण करूँगा।” इस प्रकार मेघकुमार के समान भगवान को निवेदन करके गजसुकुमाल अपने घर आये और मातापिता ने दीक्षा लेने के उनके विचार सुनकर गजसुकुमाल से कहा कि हे पुत्र ! तुम हमें बहुत प्रिय हो । हम तुम्हारा वियोग सहन नहीं कर सकेंगे। अभी तुम्हारा विवाह भी नहीं हुआ है इसलिए तुम पहले विवाह करो । विवाह करके कुल की वृद्धि करके सन्तान को अपना दायित्व सौंप कर फिर दीक्षा ग्रहण करना । तदनन्तर कृष्ण-वासुदेव गजसुकुमाल के विरक्त होने की बात सुनकर गजसुकुमाल के पास आये और आकर उन्होंने गजसुकुमाल कुमार का स्नेह से आलिंगन किया, आलिंगन कर गोद में बिठाया, गोद में
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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