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________________ तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ] 59 } कुमारस्य भार्या भविष्यति । तत: ते कौटुम्बिक-पुरुषा: यावत् प्रक्षिपन्ति । ततः खलु ते कौटुम्बिक पुरुषा: यावत् प्रत्यर्पयन्ति । कृष्ण: वासुदेव: द्वारावत्याः नगर्याः मध्यंमध्येन निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव सहस्राम्रवनं उद्यानं यावत् पर्युपासते । ततः खलु अर्हन् अरिष्टनेमिः कृष्णाय वासुदेवाय गज-सुकुमालाय कुमाराय तस्यै च धर्मकथां (उपादिशत्) कृष्णः प्रतिगतः। अन्वयार्थ-तएणं से कण्हे वासुदेवे = तदनन्तर वह कृष्ण वासुदेव, कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ = राजसेवकों को बुलाते हैं, सद्दावित्ता एवं वयासी- = बुलाकर इस प्रकार कहते हैं, गच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया ! = हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ और, सोमिलं माहणं जाइत्ता सोमंदारियं = सोमिल से सोमा कन्या की याचना कर, गिण्हह, गिण्हित्ता = उसे प्राप्त करो, प्राप्त कर उसे, कण्णंतेउरंसि पक्खिवह = कन्याओं के अन्त:पुर में पहुँचा दो। तएणं एसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स = इसके बाद यह सोमा गजसुकुमाल कुमार की, भारिया भविस्सइ = भार्या बनेगी। तए णं ते कोडुबिय पुरिसा = तदनन्तर उन राजसेवकों ने, जाव पक्खिवंति = सोमा को अंत:पुर में पहुंचा दिया। तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा = तब उन कौटुम्बिक पुरुषों ने, जाव पच्चप्पिणंति = श्री कृष्ण को वापस सूचना दी। कण्हे वासुदेवे बारवईए = कृष्णवासुदेव द्वारावती, नयरीए मज्झंमज्झेणं = नगरी के मध्य-मध्य से, णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता = निकलते हैं, निकलकर, जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे = जहाँ पर सहस्राम्रवन बगीचा है वहाँ, जाव पज्जुवासइ = पर जाकर प्रभु की सेवा करने लगे। तए णं अरहा अरिट्ठणेमी = तदनन्तर भगवान अरिष्टनेमि ने, कण्हस्स वासुदेवस्स = कृष्ण वासदेव को. गयसकमालस्स कुमारस्स = व गजसुकुमाल कुमार को, तीसे य० धम्म कहा = तथा उस सभा को धर्म का उपदेश दिया । कण्हे पडिगए = श्री कृष्ण वापस लौट गये। भावार्थ-तब वह कृष्ण-वासुदेव आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाते हैं, बुलाकर इस प्रकार कहते हैं-“हे देवानुप्रियों ! तुम सोमिल ब्राह्मण के पास जाओ और उससे इस सोमा कन्या की याचना करो, उसे प्राप्त करो और फिर उसे लेकर कन्याओं के राजकीय अन्तःपुर में पहुँचा दो । समय पाकर यह सोमा कन्या, मेरे छोटे भाई गजसुकुमाल की भार्या होगी।” ___तदनन्तर कृष्ण की आज्ञा को शिरोधार्य कर वे राजसेवक सोमिल ब्राह्मण के पास गये और उससे उसकी कन्या की याचना की। इससे सोमिल ब्राह्मण अत्यन्त प्रसन्न हआ और अपनी कन्या को ले जाने की स्वीकृति दे दी। उन कौटुम्बिक पुरुषों ने सोमा को उसके पिता सोमिल से प्राप्त कर यावत् अन्त:पुर में पहुँचा दिया और उन्होंने श्री कृष्ण को निवेदन किया कि उनकी आज्ञा का यावत् पूर्णत: पालन हो गया है।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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