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________________ तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ] 53} भावार्थ-तदनन्तर श्री कृष्ण वासुदेव द्वारा तेले की तपस्या द्वारा की गई अपनी आराधना से प्रसन्न होकर हरिणेगमैषी देव श्री कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोला-“हे देवानुप्रिय! देवलोक का एक देव वहाँ की आयुष्य पूर्ण होने पर देवलोक से च्युत होकर आपके सहोदर छोटे भाई के रूप में जन्म लेगा और इस तरह आपका मनोरथ अवश्य पूर्ण होगा। पर वह बाल्यकाल बीतने पर यावत् युवावस्था प्राप्त होने पर भगवान अरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर श्रमण-दीक्षा ग्रहण करेगा।" श्री कृष्ण वासुदेव को उस देव ने दूसरी बार, तीसरी बार भी यही कहा और यह कहने के पश्चात् जिस दिशा की ओर से आया था उसी दिशा की ओर लौट गया। सूत्र 14 मूल- तए णं से कण्हे वासुदेवे पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्ख मित्ता जेणेव देवई देवी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं करेइ, करित्ता एवं वयासी-होहिइणं अम्मो! ममं सहोयरे कणीयसे भाउत्ति कट्ट देवई देविं इटाहिं जाव आसासेइ, आसासित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए। तए णं सा देवई देवी अण्णया कयाइं तंसि तारिसगंसि जाव सीहं सुमिणे पासित्ता पडिबुद्धा, जाव हट्ठ तुट्ठ हियया, तं गब्भं सुहं सुहेणं परिवहइ। संस्कृत छाया- ततः खलु सः कृष्णः वासुदेव: पौषधशालातः प्रतिनिष्क्राम्यति प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव देवकी देवी तत्रैव उपागच्छति उपागत्य देवक्या: देव्याः पादग्रहणं करोति, कृत्वा एवम् अवदत्-भविष्यति खलु अम्ब ! मम सहोदर: कनीयान् भ्राता, इति कृत्वा देवकी देवी इष्टाभिः (वाग्भिः) यावत् आश्वासयति, आश्वास्य यस्याः दिश: प्रादुर्भूत: तामेव दिशं प्रतिगतः । ततः खलु सा देवकी देवी अन्यदा कदाचित् तस्मिन् तादृशके यावत् सिंहं स्वप्ने दृष्ट्वा प्रतिबुद्धा, यावत् हृष्ट-तुष्ट-हृदया, तं गर्भं सुखं सुखेन परिवहति। अन्वयार्थ-तए णं से कण्हे वासुदेवे = इसके बाद श्री कृष्ण वासुदेव, पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ = पौषधशाला से निकले, पडिणिक्खमित्ता जेणेव = निकलकर जहाँ पर, देवई देवी तेणेव उवागच्छइ = देवकी देवी थी वहाँ आये, उवागच्छित्ता देवईए देवीए = आकर देवकी देवी की, पायग्गहणं करेइ = चरण-वन्दना की। करित्ता एवं वयासी = वन्दना करके इस प्रकार कहा, होहिइ णं अम्मो! ममं सहोयरे कणीयसे भाउत्ति = हे माता! मेरे सहोदर छोटा भाई अवश्य होगा इस प्रकार, कट्ट
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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