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________________ { 48 [अंतगडदसासूत्र चेव णं मए एगस्स = परन्तु मैंने एक की भी, वि बालत्तणए समणुभूए = बालक्रीड़ा का अनुभव नहीं किया, एस वि य णं कण्हे = और यह कृष्ण, वासुदेवे छण्हं मासाणं = वासुदेव भी छ: छ: महीनों के, ममं अंतियं पायवंदए = बाद मेरे पास चरण वंदना, हव्वमागच्छड = के लिए शीघ्रता से आता है। तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ = इसलिये वे माताएँ धन्य हैं, जासिं मण्णे नियगकुच्छि- = जिनकी अपनी कुक्षि से, संभूयाइं थणदुद्धलुद्धयाइं = उत्पन्न, स्तनपान के लोभी, महुर-समुल्लावयाइं मम्मण = बालक मधुर आलाप करने वाले मन्मन, पजंपियाई, थणमूलकक्खदेसभागं = बोलते हुए, स्तन मूल कक्ष भाग में, अभिसरमाणाई, मुद्धयाई = अभिसरण करते हैं, (ऐसे उन) मुग्ध (भोले), पुणो य कोमलकमलोवमेहि = बालकों को फिर कोमल कमल के समान, हत्थेहिं गिण्हिऊण उच्छंगे णिवेसयाई = हाथों से पकड़कर गोद में बैठा लेती हैं, देति समुल्लावए = और उन बालकों के आलापकों का, सुमहुरे पुणो पुणो = बार-बार सुमधुर, मंजुलप्पभणिए = और मंजुल उत्तर, देंति = देती हैं। अहं णं अधण्णा अपुण्णा = मैं निश्चय ही अधन्य हूँ, पुण्यहीन हूँ, एत्तो एगयरमवि न पत्ता = इनमें से मैंने एक भी प्राप्त नहीं किया, (एवं) ओहयमणसंकप्पा = (इस प्रकार) खिन्नमन (देवकी), जाव झियायइ = यावत् आर्तध्यान करने लगी। भावार्थ-उस समय उस देवकी देवी को इस प्रकार का विचार, चिन्तन और अभिलाषापूर्ण मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ कि अहो ! मैंने पूर्णत: समान आकृति वाले यावत् नलकूबर के समान सात पुत्रों को जन्म दिया पर मैंने एक की भी बाल्यक्रीड़ा का आनन्दानुभव नहीं किया। फिर यह कृष्ण वासुदेव भी छ:-छ: महीनों के पश्चात् मेरे पास चरण-वन्दन के लिये आता है और वह भी भागता-दौड़ता । तो ऐसी स्थिति में वस्तुतः वे माताएँ धन्य हैं जिनकी अपनी कुक्षि से उत्पन्न हुए, स्तनपान के लोभी बालक, मधुर आलाप करते हुए, तुतलाती बोली से मन्मन बोलते हुए जिनके स्तनमूलकक्ष भाग में अभिसरण करते हैं, फिर उन मुग्ध बालकों को जो माताएँ कमल के समान अपने कोमल हाथों द्वारा पकड़ कर गोद में बिठाती हैं और अपने-अपने बालकों से मंजुल-मधुर-शब्दों में बार-बार बातें करती हैं। मैं निश्चित रूपेण अधन्य और पुण्यहीन हूँ क्योंकि मैंने इनमें से किसी एक पुत्र की भी बाल क्रीड़ा नहीं देखी। इस प्रकार देवकी खिन्न मन से यावत् आर्तध्यान करने लगी। वह इस प्रकार का चिन्तन कर ही रही थी कि सूत्र 11 मूल तए णं से कण्हे वासुदेवे बहाए जाव विभूसिए देवईए देवीए पायवंदए हव्वमागच्छइ । तए णं से कण्हे वासुदेवे देवइं देवीं पासइ, पासित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं करेइ, करित्ता देवइं देविं एवं वयासी-अन्नया
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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