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________________ तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ] 39} निश्चय ही मिथ्या है यह, पच्चक्खमेव दिस्सइ = प्रत्यक्ष ही दिख रहा है, भारहे वासे अण्णाओ वि अम्मयाओ = भारतवर्ष में दूसरी भी माताओं ने, सरिसए जाव पुत्ते पयायाओ। = ऐसे यावत् पुत्रों को जन्म दिया है। तं गच्छामि णं अरहं अरिट्ठणेमि = इसलिये मैं अर्हन्त भगवान अरिष्टनेमि के पास जाती हूँ। वंदामि नमसामि = वंदना नमस्कार करती हूँ। वंदित्ता, नमंसित्ता इमं = वन्दना, नमस्कार करके इस, च णं एयारूवं वागरणं = इस प्रकार के उक्ति वैपरीत्य को, पुच्छिस्सामि त्ति कट्ट एवं संपेहेइ = पूछूगी ऐसा मन में विचार करती है। संपेहित्ता कोडुंबियपुरिसे = विचार कर अमात्यादि पुरुषों को, सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी = बुलवाती है, बुलाकर ऐसे कहा, लहुकरणजाणप्पवरं जाव = शीघ्रगति वाले यानप्रवर को यावत्, उवट्ठवेंति = शीघ्र उपस्थित करो । (यान द्वारा वहाँ जाकर), जहा देवाणंदा जाव पज्जुवासइ = देवानन्दा की तरह उपासना करती है। भावार्थ-इस प्रकार की बात कहकर मुनियों के लौट जाने के पश्चात् उस देवकी देवी को इस प्रकार का विचार यावत् चिन्तापूर्ण अध्यवसाय उत्पन्न हुआ-“पोलासपुर नगर में अतिमुक्त कुमार नामक श्रमण ने मेरे समक्ष बचपन में इस प्रकार भविष्यवाणी की थी कि हे देवानप्रिये देवकी! तम परस्पर एक-दूसरे से पूर्णत: समान आठ पुत्रों को जन्म दोगी, जो नलकूबर के समान होंगे। भरतक्षेत्र में दूसरी कोई माता वैसे पुत्रों को जन्म नहीं देगी।" पर वह भविष्यवाणी मिथ्या सिद्ध हुई । क्योंकि यह प्रत्यक्ष ही दिख रहा है कि भरतक्षेत्र में अन्य माताओं ने भी सुनिश्चितरूपेण ऐसे पुत्रों को जन्म दिया है। मुनि की बात मिथ्या नहीं होनी चाहिये, फिर यह प्रत्यक्ष में उससे विपरीत क्यों ? ऐसी स्थिति में मैं अरिहंत अरिष्टनेमि भगवान की सेवा में जाऊँ, उन्हें वन्दननमस्कार करूँ और वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार के कथन के विषय में प्रभु से पूलूंगी। इस प्रकार सोचा । ऐसा सोचकर देवकी देवी ने आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाया और बुलाकर ऐसा बोली-“शीघ्रगामी श्रेष्ठ रथ को उपस्थित करो।" आज्ञाकारी पुरुषों ने रथ उपस्थित किया । देवकी महारानी उस रथ में बैठ कर यावत् प्रभु के समवसरण में उपस्थित हुई और देवानन्दा द्वारा जिस प्रकार भगवान महावीर की पर्युपासना किये जाने का वर्णन है, उसी प्रकार महारानी देवकी भगवान अरिष्टनेमि की यावत् पर्युपासना करने लगी। जहा देवाणंदा जाव पज्जुवासइ-देवकी महारानी का भगवान की सेवा में जाने का वर्णन भगवती सूत्र शतक 9 उद्देशक 33 में वर्णित देवानन्दा की दर्शन यात्रा के समान बतलाया गया है। अर्थात् महारानी देवकी धार्मिक रथ में बैठकर द्वारिका के मध्य बाजारों में होती हुई नन्दन वन में भगवान के अतिशय को देखकर रथ से नीचे उतरी और पाँच अभिगम करके समवशरण में जाकर भगवान को विधिवत् वन्दन नमस्कार करके सेवा करने लगी।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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