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________________ { 26 [अंतगडदसासूत्र परियाओ = बीस वर्ष की दीक्षा पर्याय पाली, सेसं तहेव जाव सेत्तुंजे पव्वए = शेष उसी प्रकार यावत् शत्रुजय पर्वत पर, मासियाए संलेहणाए जाव सिद्धे = 1 मास की संलेखणा करके यावत् सिद्ध हुए, एवं खलु जम्बू ! = इस प्रकार हे जम्बू!,समणेणं जाव संपत्तेणं अट्रमस्स = श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने आठवें, अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स = अंग अन्तकृद्दशा के तीसरे वर्ग के, पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते = प्रथम अध्ययन का यह भाव दर्शाया है। भावार्थ-पाणिग्रहण कराने के पश्चात् उस नाग गाथापति ने अनीकसेन कुमार को इस प्रकार का प्रीति-दान दिया, जैसे कि बत्तीस करोड़, चाँदी-सोना आदि । इसका विवरण महाबल के समान समझना । यावत् अनीकसेन ऊपर प्रासाद में बजती हुई मृदङ्गों की तालों के साथ उत्तम भोगों को भोगता हुए रहने लगा। उस काल उस समय में अरिहंत अरिष्टनेमि यावत् भद्दिलपुर पधारे। श्रीवन नाम के उद्यान में यथाविधि अवग्रह-तृणादि की आज्ञा लेकर यावत् विचरने लगे। धर्म श्रवण करने परिषद् आई। तदनन्तर उस अनीकसेन कुमार के कर्ण रन्ध्रों में प्रभु दर्शनार्थ जाते हुए जन समूह का विपुल जनरव पड़ा। गौतम के समान कुमार अनीकसेन ने भी समवसरण में जा, प्रभु का उपदेश सुन, माता पिता की आज्ञा ले प्रभु चरणों में दीक्षा ग्रहण की। विशेष यह कि सामायिक आदि 14 पूर्वो का ज्ञान सीखा। 20 वर्ष की श्रमण पर्याय का पालन किया। शेष उसी प्रकार यावत् शत्रुजय पर्वत पर जाकर एक मास की संलेखना करके यावत् सिद्ध हुए । उपसंहार-इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण यावत् मुक्ति प्राप्त प्रभु ने आठवें अंतकृद्दशा नामक अंग शास्त्र के तीसरे वर्ग में प्रथम अध्ययन का इस भाँति वर्णन किया है।" ।। इइ पढममज्झयणं-प्रथम अध्ययन समाप्त ।। 12-6 अज्झयणाणि-2-6 अध्ययन | सूत्र 5 मूल- जहा अणीयसेणे, एवं सेसावि-(अणंतसेणे अजियसेणे अणिहयरिऊ देवसेणे सत्तुसेणे) छ अज्झयणा एगगमा-बत्तीसओ दाओ, बीसं वासाइं परियाओ, चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जंति, सेत्तुंजे जाव सिद्धा। छट्ठमज्झयणं समत्तं। संस्कृत छाया- यथा अनीकसेनः, एवं शेषान्यपि-(2. अनंतसेनः, 3. अजितसेनः, 4. अनिहरिपुः, 5. देवसेन:, 6. शत्रुसेनः ।) षडध्ययनानि एकगमानि, द्वात्रिंशत्
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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