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________________ तृतीय वर्ग - प्रथम अध्ययन ] संस्कृत छाया 21 } वग्गस्स तेरस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा - अणीयसेणे जाव अणादिट्ठी, पढमस्सणं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्ते के अद्वे पण्णत्ते ? एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य तृतीयस्य वर्गस्य अन्तकृद्दशानां त्रयोदश अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि तानि यथा - अनीकसेन:, अनन्तसेनः, अजितसेनः, अनिहतरिपुः, देवसेनः, शत्रुसेन, सारण:, गजः, सुमुखः, दुर्मुखः, कूपकः, दारुकः, अनादृष्टिः । यदि खलु भदन्त ! श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य अन्तकृद्दशानां तृतीयस्य वर्गस्य त्रयोदश अध्ययनानि प्रज्ञप्तानि तानि यथा - अनीकसेनः यावत् अनादृष्टिः, प्रथमस्य खलु भदन्त ! अध्ययनस्य अन्तकृद्दशानां श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन कः अर्थः प्रज्ञप्तः ? " = अन्वयार्थ - एवं खलु जंबू ! = इस प्रकार निश्चय करके हे जम्बू !, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त (प्रभु) ने, अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स = आठवें अंग के तृतीय वर्ग के, अंतगडदसाणं = अन्तकृद्दशा के, तेरस अज्झयणा पण्णत्ता = तेरह अध्ययन कहे हैं। तं जहा - = जो इस प्रकार हैं-, अणीयसेणे, अणंतसेणे, अनीक सेन, अनन्त सेन, अजियसेणे, अणिहयरिऊ = अजितसेन, अनिहत रिपु, देवसेणे, सत्तुसेणे, सारणे = देवसेन, शत्रुसेन, सारण, गए, सुमुहे, दुम्मुहे: गज सुकुमाल, सुमुख, दुर्मुख, कूवए, दारुए, अणादिट्ठी = कूपक, दारुक, अनादृष्टि, जइ णं भंते! = यदि निश्चय ही हे भदन्त !, समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स = श्रमण यावत् मुक्त (प्रभु) ने आठवें, अंगस्स अंतगडदसाणं = अंग अन्तकृद्दशा के, तच्चस्स वग्गस्स तेरस = तृतीय वर्ग के तेरह, अज्झयणा पण्णत्ता = अध्ययन कहे हैं, तं जहा = जो इस प्रकार हैं-, अणीयसेणे जाव अणादिट्ठी = अनीकसेन से लेकर अनादृष्टि तक, पढमस्स णं भंते ! = (तो) हे भदन्त ! प्रथम का, अज्झयणस्स अंतगडदसाणं = अन्तकृद्दशांग के अध्ययन का, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त (प्रभु) ने, के अट्ठे पण्णत्ते ? = क्या भाव प्रतिपादित किया है ? = भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी - "हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने आठवें अंग शास्त्र अन्तकृद्दशा के तीसरे वर्ग में तेरह अध्ययनों का वर्णन किया है। वे इस प्रकार हैं- 1. अनीक सेन, 2. अनन्त सेन, 3. अजित सेन, 4. अनिहत रिपु, 5. देवसेन, 6. शत्रुसेन, 7. सारण, 8. गज सुकुमाल, 9. सुमुख, 10. दुर्मुख, 11. कूपक, 12. दारुक और 13. अनादृष्टि । श्री जम्बू स्वामी- “यदि निश्चय ही हे भगवन् ! श्रमण यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु महावीर ने आठवें अंग
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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