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________________ { 16 [अंतगडदसासूत्र सोलह उपवास करके पारणा किया जाता है । इस तप में दिन को उत्कटुक आसन से बैठकर सूर्य की आतापना ली जाती है और रात्रि में वस्त्र रहित वीरासन से बैठकर ध्यान किया जाता है।।8।। गुणरत्न संवत्सर तप-तालिका महीना तप व तप की संख्या तप के दिन पारणे के दिन योग छट्ठा 32 पहला 15 उपवास दूसरा 10 बेला तीसरा 8 तेला चौथा 6 चोला पाँचवाँ 5 पचोला 4 छह सातवाँ 3 सात आठवाँ 3 अठाई नवमाँ 3 नव दसवाँ 3दस ग्यारहवाँ 3 ग्यारह बारहवाँ 2 बारह तेरहवाँ 2 तेरह चौदहवाँ 2 चौदह पन्द्रहवाँ 2 पन्द्रह सोलहवाँ 2 सोलह योग 407 73 480 मूल- एवं खलु जम्बू! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते।। सूत्र 9॥ संस्कृत छाया- एवं खलु जंबू! श्रमणेन यावत् संप्राप्तेन अष्टमस्य अंगस्य अन्तकृद्दशानां प्रथमस्य वर्गस्य प्रथमस्य अध्ययनस्य अयमर्थ: प्रज्ञप्तः ।। सूत्र 9 ।। अन्वायार्थ-एवं खलु जम्बू ! = “इस प्रकार निश्चय से हे जम्बू !, समणेणं जाव संपत्तेणं = श्रमण यावत् मोक्ष को प्राप्त प्रभु ने, अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं = आठवें अंग अन्तकृद्दशा के, पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स = प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का, अयम? पण्णत्ते = यह भाव फरमाया है। भावार्थ-आर्य सुधर्मा-“इस प्रकार हे जम्बू! श्रमण भगवान यावत् मोक्ष प्राप्त प्रभु ने आठवें अंगशास्त्र अन्तकृद्दशा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह भाव कहा है।" ।। इइ पढममज्झयणं-प्रथम अध्ययन समाप्त ।। 34
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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