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________________ भजन ] माता - कायर हैं हम जाओ बेटा, जन-जन का पथ खोलो । रोती हूँ कर कहती मन से, वीर की जय-जय बोलो, हो बेटा वीर जी जय जय बोलो। दुःख हरना, प्रभु रक्षा करना, लेना तेरा भक्त सम्भाल रे, जय-जय हो वीर तुम्हारी रे...... 116 ।। अर्जुनमा (तर्ज- जब तुम्हीं चले परदेश.......) अर्जुनमाली अणगार, क्षमा कर धार, आत्मा तारी, ... । महावीर प्रभु की सुन वाणी, लीनी शिक्षा उत्तम प्राणी । कर लिया अभिग्रह कठिन प्रतिज्ञा धारी ।। 1 ।। मैं जीवन भर नहीं खाऊँगा, बेले-बेले तप ठाऊँगा । कर विनय चरण में, प्रभु से अरज गुजारी।।2 ।। ले आज्ञा मुनि गोचरी जावे, स्वीकृति लेकर राजगृह आवे । भोजन हित फिरते मुनिवर, घर-घर द्वारी ।।3 ।। देखा सबने मुनि को आते, कोई मारे चपेटा अरु लातें । रे दुष्ट निकल जा, नगरी बाहर हमारी 114 ।। तूने मारा माँ बाप भाई, नहीं दिल में दया जरा आई... ।। 5 ।। कहीं मिले आहार तो नहीं पानी, समता मुनिवर मन में आनी । 'केवल' अर्जुन हुए, सिद्धि पद के धारी 116 ।। अरिहन्त देव का क्या कहना (तर्ज- दुनियाँ में देव हजारों हैं.......) मैं बार-बार बलिहारी ।। टेर ।। दुनियाँ में देव अनेकों हैं, अरिहन्त देव का क्या कहना। उनके अतिशय का क्या कहना, उनके आश्रय का क्या कहना ।। र ।। जो दर्शन ज्ञान अनन्ता है, जो राग-द्वेष जयवन्ता हैं । जो भक्तों के भगवन्ता हैं, उनकी करुणा का क्या कहना ।। 1 ।। जो आदि धर्म की करते हैं, भव्यों के भव को हरते हैं। 2751 जो तिरते और तिराते हैं ऐसे तीरथ का क्या कहना 12 ।। ,
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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