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________________ { 2 [अंतगडदसासूत्र जो क्षेत्रों की मर्यादाओं को बनाये रखने वाले महाहिमवान् पर्वत के समान सुसभ्य, मानव समाज की मर्यादाओं का संरक्षक और वर्णन करने योग्य एक सुशासक के सभी गुणों से सम्पन्न था। टिप्पणी-तेणं कालेणं तेणं समएणं-यहाँ काल और समय एकार्थक होते हुए भी अपनी विशेषता लिये हुए हैं। काल वर्ष सूचक है, जबकि समय दिन सूचक है। चम्पा नामं नयरी-“नयरी सोहन्ति जलमूलवच्छा' यानी नगरी की शोभा जल, मूल और वृक्षों से होती है। चम्पानगरी धन-धान्य से परिपूर्ण, चोर-डाकुओं के भय से रहित एवं आजीविका के प्रचुर साधनों से युक्त थी । वहाँ के नागरिकों को सभी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध थीं। चेइए-पूर्णभद्र नाम का यक्षायतन पुराना एवं बहुत जनों द्वारा पूजित था। उसके चारों ओर एक बड़ा वर्णनीय उद्यान था। उस उद्यान की कान्ति-दीप्ति, काली, नीली, हरी, शीतल, स्निग्ध और तीव्र थी। वह पाँच वर्णों के सुगन्धित फूलों, सभी ऋतुओं के फलों और पुष्पों से युक्त था । उसके वृक्ष सदा मंजरियों, फूलों के गुच्छों एवं पत्तों के समूह से सुशोभित थे। वह दर्शकों के चित्त में प्रसन्नता पैदा करने वाला, अनुपम नयनाभिराम मनोरम एवं शोभनीय था। महाहिमवान पर्वत की विशेषताएँ-1. हिमवान् पर्वत जिस प्रकार भरत क्षेत्र की मर्यादा करने वाला है, उसी प्रकार राजा अपने राज्य की मर्यादा करने वाला होता है। 2. पर्वत बाहरी उपद्रवों से क्षेत्र की रक्षा करता है, वैसे ही राजा बाहरी हमलों से प्रजा की रक्षा करता है। 3. पर्वत में जिस तरह अनेक प्रकार की जड़ी-बूंटियाँ एवं औषधियाँ होती हैं, उसी तरह राजा में दया, शौर्य, गाम्भीर्य, दान आदि अनेक गुण होते हैं। 4. पर्वत जैसे भंयकर तूफानों में भी अचल रहता है, वैसे ही राजा भी अपनी नीति और मर्यादाओं में अचल रहता है। 5.पर्वत जैसे सभी प्राणियों का आधार है, वैसे राजा; प्रजा का आधार होता है।।1।। सूत्र 2 मूल तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मे थेरे जाव पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चम्पा नयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव समोसरिए। परिसा णिग्गया जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्ज सुहम्मस्स अंतेवासी अज्ज जम्बू जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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