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________________ { 264 [अंतगडदसासूत्र अल्प समय में उत्तरोत्तर कर्म परमाणुओं की अधिक संख्या में निर्जरा होने को गुणश्रेणी कहते हैं। गुण श्रेणी में अपूर्वकरण होता है। तत्त्वार्थ सूत्र के अध्याय में 10 प्रकार की गुणश्रेणियाँ बतलाई हैं-1. सम्यक्त्व, 2. देशविरति, 3. सर्वविरति, 4. अनंतानुबंधी विसंयोजना, 5. दर्शनमोह का क्षपण, 6. चारित्र मोह का क्षपण, 7. मोहक्षपण, 8. क्षीण मोह, 9. सयोगी केवली, 10. अयोगी केवली अर्थात् अपूर्वकरण निर्जरा का उत्कृष्ट साधन है। प्रश्न 58. आयु टूटने का अभिप्राय क्या है? किन-किन कारणों से आयु टूटती है? उत्तर-पूर्वबद्ध आयु को निर्धारित समय के पहले ही भोग लेना आयु का टूटना कहलाता है। सामान्य मनुष्यतिर्यंचों में अपवर्तना करण के द्वारा आयु कर्म की स्थिति को (अन्य कर्मों के समान) कम किया जा सकता है। जिस आयु में कमी हो सके आयु टूट सके उसे अपवर्तनीय आयु कहते हैं। अंतगड़सूत्र में सोमिल ब्राह्मण के लिए पाठ आया हैठिइभेएणं..... अर्थात् स्थिति का भेदघात होने से वहीं काल कर गया। ठाणांग सूत्र के सातवें ठाणे में आयु टूटने के सात कारण इस प्रकार हैं-1. राग-द्वेष भय आदि की तीव्रता से 2. शस्त्रघात से 3. आहार की न्यूनाधिकता से या आहार के निरोध से 4. ज्वर-आतंक की तीव्र वेदना से 5. पर के आघात यानी गड्ढे आदि में गिर जाना 6. साँप-बिच्छू आदि के काटने से 7. श्वासोच्छ्वास के निरोध से आयु टूट सकती है। इसके अलावा रक्त क्षय से, संक्लेश बढ़ने से, वज्र के गिरने से, अग्नि उल्कापात से, पर्वत, वृक्षादि के गिरने से प्राकृतिक आपदादि से भी आयु टूट सकती है। प्रश्न 59. उदीरणा किसे कहते हैं? क्या यह किसी की सहायता से संभव है? इसका परिणाम क्या है? उत्तर-उदयावलिका से बाहर स्थित कर्म परमाणुओं को कषाय सहित या कषाय रहित योग संज्ञा वाले वीर्य (पुरुषार्थ) विशेष से उदयावली में लाकर उनका उदय प्राप्त कर्म परमाणुओं के साथ अनुभव करना उदीरणा कहलाती है। उदीरणा उन्हीं कर्मों की सम्भव है, जिनका अबाधाकाल पूर्ण हो चुका है। जिन कर्मों का उदय चल रहा है, उनके सजातीय कर्मों की उदीरणा सम्भव है। समुद्घात में उदीरणा विशेष होती है। उदीरणा में बाहरी व्यक्ति, वस्तु आदि निमित्त अथवा सहायक भी बन सकते हैं जैसाकि अंतगडसूत्र में कहा है तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स अणेगभवसयसहस्ससंचियं कम्मं उदीरेमाणेणं बहकम्मणिज्जरढें साहिज्जे दिण्णे। उदीरणा का फल बहुत सारे कर्मों की नियत समय से पहले निर्जरा हो जाना है। यदि उदीरक जीव समभाव रख लेता है तो नये कर्म-बंधन से अपने आपको बचा लेता है। प्रश्न 60. उत्कृष्ट श्रुतज्ञान किसे समझना? 90 में से कितने महापुरुषों को उत्कृष्ट श्रुत ज्ञान की सम्भावना है? उत्तर-चौदह पूर्व या सम्पूर्ण द्वादशांगी का ज्ञान उत्कृष्ट श्रुतज्ञान कहलाता है। अंतगड़ में वर्णित 90 आत्माओं में से 12 महापुरुषों को 14 पूर्वो का तथा 10 महापुरुषों को द्वादशांगी का श्रुतज्ञान था। प्रश्न 61. पद्मावती महारानी को अरिहंत अरिष्टनेमि दारा प्रवजित मुण्डित करने की बात क्यों कही? उत्तर-अरिहंत भगवान ने पद्मावती आदि को ‘करेमि भंते' का पाठ पढ़ाकर मात्र सावध योग का जीवन भर के लिए त्याग कराया हो, सामायिक चारित्र में प्रवेश कराया हो उसके बाद यक्षिणी ने उन्हें संयम में यत्नशील बनने के लिए
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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