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________________ प्रश्नोत्तर] 259 } उत्तर-भगवान महावीर के 11 गणधरों की द्वादशांग सम्बन्धी नव वाचनाएँ हुई हैं। जैसे-आदि के सात गणधरों की सात, आठवें-नवमें गणधर की आठवीं और दसवें-ग्यारहवें गणधर की नवमीं, इनमें किसी एक वाचना में प्रश्नगत दस जीवों का वर्णन हो सकता है। किन्तु वर्तमान वाचना उस वाचना से अन्य, सुधर्मास्वामी की वाचना है। अत: इसमें उन दस जीवों का वर्णन नहीं मिलता। इसको वाचनान्तर समझना चाहिए। तीर्थङ्कर, अन्त करने वाले अनेकों जीवों का वर्णन सुनाते हैं। उनमें से किसी वाचना में गणधरों द्वारा किन्हीं का वर्णन Dथा जाता है। दूसरे किसी वाचना में उनसे भिन्न किन्हीं दूसरों का ही वर्णन किया जाता है। अत: वर्तमान अन्तगड़ सूत्र में उनका नहीं मिलना आपत्तिजनक नहीं समझना चाहिए। प्रश्न 43. अन्तकृद्दशांग में श्रीकृष्ण को आगामी बारहवाँ तीर्थङ्कर होना बताया है, जबकि समवायांग में भावी चौबीस तीर्थङ्करों के नाम और उनसे पूर्व भव के जो नाम बताये हैं, उनकी गिनती करने पर कृष्ण आगामी तेरहवें तीर्थङ्कर ठहरते हैं। इसका समन्वय क्या है ? उत्तर-श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभनाथ से गणना की जाये, तो वे बारहवें होते हैं और चौबीसवें श्री महावीर स्वामी को प्रथम मानकर पीछे से गणना की जाये तो वासुपूज्य तेरहवें आते हैं। वैसे ही श्रीकृष्ण को भावी तीर्थङ्करों में प्रथम तीर्थङ्कर श्री महापद्म की ओर से (पूर्वानुपूर्वी से) गणना की जाय, तो वे तेरहवें आते हैं और अन्तिम तीर्थङ्कर श्री अनन्तविजय की ओर से (पश्चादानुपूर्वी) से गणना की जाये, तो बारहवें होते हैं। अंतकृद्दशांग में पिछली गिनती से बारहवें तीर्थङ्कर होना बताया तथा समवायांग में पहली गिनती से तेरहवें स्थान पर उन्हें रखा हो, ऐसा सम्भव प्रतीत होता है। इस प्रश्न के समाधान में श्रमण परम्परा में प्राचीन समय से ऐसी ही मान्यता चली आ रही है। प्रश्न 44. अन्तगड़दशा सूत्र में अर्जुन माली के द्वारा 5 मास 13 दिन में 1141 हत्यायें हुई, उसका पाप अर्जुन को लगा या यक्ष को ? उत्तर-अर्जुन द्वारा की गई हत्याओं में अर्जुन और मुद्गरपाणी यक्ष के अतिरिक्त अन्य भी सहयोगी होते हैं। छहों गोष्ठिल पुरुष जो कुछ अच्छा या बुरा करे, वह अच्छा ही किया, ऐसा मानकर उपेक्षा करने वाले नगर जन और अधिकारी भी इस हत्या की अपेक्षा से समर्थक माने जा सकते हैं क्योंकि यदि वे आरम्भ में ही इसका विरोध करते, तो इस प्रकार हत्या का कारण ही उपस्थित नहीं होता। अत: कुछ पाप नगरवासियों को भी लगना चाहिए। फिर राजा ने उन्हें इस सम्बन्ध में छूट दे रखी थी । यद्यपि राजा को भविष्य में इस प्रदत्त वर से ऐसी हत्यायें होने की कल्पना नहीं रही होगी, फिर भी उनका ऐसा वरदान इस हत्या में निमित्त तो बना ही । इसलिए राजा को भी पाप अवश्य लगना चाहिए। ललित गोष्ठी के छहों पुरुषों ने अर्जुन को बाँधकर बन्धुमती के साथ भोग भोगना आरम्भ किया, जिससे अर्जुन माली उत्तेजित हुआ और यक्ष को याद किया। अत: कुछ पाप उन्हें भी लगना चाहिए। बन्धुमती ने अर्जुन माली को बाँधने के समय यदि इधर-उधर किसी को बुलाने-करने आदि का कहा होता और शील-रक्षा के लिए भागने-चिल्लाने का प्रयत्न किया होता या पति के सामने ही वह इस प्रकार के व्याभिचार में सम्मिलित न हुई होती, तो अर्जुन माली को इतनी अधिक उत्तेजना नहीं मिलती, अत: बन्धुमती का भी इस सम्बन्ध में कुछ अपराध मानना पड़ता है।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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