SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [242 परिशिष्ट 5 प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. 'चामीगर पागारा' से क्या आशय समझना चाहिए? उत्तर- चामीगर पागारा स्वर्ण से निर्मित परकोट जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के तीसरे वक्षस्कार में चक्रवर्ती भरतजी की राजधानी विनीता और अंतगड सूत्र में वासुदेव श्री कृष्णजी की राजधानी द्वारिका के चारों ओर स्वर्ण परकोट देवताओं द्वारा निर्मित बताया गया है। वैक्रिय पुद्गलों का परकोट इतनी लम्बी अवधि तक रहना शक्य नहीं है। औदारिक पुद्गलों के अंतर्गत जो सोना स्वामित्व रहित भू-भाग, भू-गर्भ में पड़ा रहता है, उसे लाकर परकोट निर्मित किया जाता है। प्रश्न 2. सोमिल के लिए आया कि वह जिस दिशा से आया, उसी दिशा की ओर चला गया, इसका क्या आशय है? उत्तर- मुख्य मार्ग द्वारिका आया [ अंतगडदसासूत्र गया जंगल ..... श्मशान जंगल से आया, द्वारिका की ओर गया, यहाँ उसकी विवक्षा नहीं समझकर आम रास्ते से श्मशान के अंदर आने और वापस आम रास्ते की ओर जाने की दिशा समझनी चाहिए। प्रश्न 3. निम्नांकित को स्पष्ट कीजिए - (अ) पुव्वाणुव्विं चरमाणे, (ब) गामाणुगामं दूइज्जमाणे, (स) सुहं सुहेणं विहरमाणे । उत्तर- (अ) पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे- पूर्वानुपूर्वी अनुयोग द्वार सूत्र में पूर्वानुपूर्वी आदि का विवेचन उपलब्ध है। चौबीस तीर्थङ्करों की पूर्वानुपूर्वी ऋषभ, अजित पार्श्व, महावीर के रूप में बताई गई है। वहाँ इसी क्रम से चली रही परिपाटी समझना। अर्थात् इस अवसर्पिणी के प्रथम तीर्थङ्कर अथवा अनादि कालीन तीर्थङ्करों की परम्परा पाद विहार की ही रही है। (ब) गामाणुगामं दूइज्जमाणे - विशिष्ट लब्धिधारी-आकाशगामिनी विद्या से, जंघाचरण-विद्याचरण आदि भी प्रसंगवश आकाश से सीधे जा सकते हैं, जैसे वायुयान । किंतु विहार का सामान्य क्रम थल पर चलने वाले वाहनों की भाँति ग्रामानुग्राम पैदल विहार करने का है। (स) सुहं सुहेणं विहरमाणे-ठाणांग सूत्र के नवमें ठाणे में आया कि लगातार या निरंतर चलने से भी रोग उत्पन्न हो सकता है। इसलिए सुखे-सुखे विहार करने का उल्लेख आया । दूसरी अपेक्षा सुख-साता होने पर कल्प उपरांत कहीं नहीं ठहरना भी ध्वनित होता है शरीर और संयम की बाधा न हो, इस प्रकार विचरण करना, शरीर भी स्वस्थ रहे और संयम भी निर्मल रहे, धर्मध्यान चलता रहे। प्रश्न 4. दीक्षार्थी को दीक्षा लेने से पूर्व एक दिन के लिए राजा क्यों बनाया जाता था? उत्तर- दीक्षा के लिए दृढ संकल्पित वैरागी को अब और रोक पाना शक्य नहीं, तब उसे राजा के रूप में देखने के
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy