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________________ {XXII} शास्त्र पढ़ने की विधि ज्ञान-वृद्धि के लिये छद्मस्थ आचार्यों के ग्रन्थ और वीतराग प्रणीत शास्त्रों के पठन-पाठन की विधि में बहुत अन्तर है । ग्रन्थों के पठन-पाठन में काल-अकाल और स्वाध्याय-अस्वाध्याय कृत प्रतिबन्ध खास नहीं होता, जबकि शास्त्रवाणी जिसको आगम भी कहते हैं, के पठन-पाठन में काल-अकाल का ध्यान रखना आवश्यक है। वीतराग प्रणीत शास्त्र अन्यान्य ग्रन्थों की तरह हर किसी समय और किसी भी स्थान में नहीं पढ़े जाते। उनके पठन-पाठन का अपना नियत समय है। चार सन्ध्याओं को और पाँच महाप्रतिपदाओं को शास्त्र का पठन-पाठन नहीं किया जाता। अतिरिक्त दिनों में जो कालिक शास्त्र हैं, वे दिन-रात्रि के प्रथम और अन्तिम प्रहर में ही नियमानुसार शरीर और आकाश में अस्वाध्यायों को छोड़कर पढ़े जाते हैं। इसके अतिरिक्त उपांग, कुछ मूल और कुछ छेद आदि उत्कालिक कहे जाते हैं, वे दिन-रात्रि के चारों प्रहर में पढ़े जा सकते हैं। स्वाध्याय करने वाले धर्मप्रेमी भाई-बहिनों को सर्वप्रथम गुरु महाराज की आज्ञा लेकर अक्षर, पद और मात्रा का ध्यान रखते हुए शुद्ध उच्चारण से पाठ करना चाहिये । आगम शास्त्र अंग, उपांग, मूल और छेद रूप से अनेक रूपों में विभक्त हैं, उन सबमें मुख्य रूप से कालिक और उत्कालिक के विभाग में सबका समावेश हो जाता है। स्वाध्याय करते समय स्वाध्यायी को यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि यह स्थान और समय स्वाध्याय के योग्य है या नहीं? जहाँ अस्वाध्याय के कारण हों, वहाँ स्वाध्याय करने से ज्ञानाचार में दोष लगने की सम्भावना रहती है। अत: ज्ञान के चौदह अतिचारों में निम्न बातों की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है, जो इस प्रकार हैं : 5) (1) सूत्र के अक्षर उलट-पलट कर पढ़ना। (2) एक शास्त्र के पद को दूसरे शास्त्र के पद से मिलाकर पढ़ना। सूत्र-पाठ में अक्षर कम करना । (4) सूत्र पाठ में अधिक अक्षर बोलना । पदहीन करना। (6) बिना विनय के पढ़ना। (7) योग-हीन-मन, वचन और काया के योगों की चपलता से पढ़ना । 8) घोषहीन-जिस अक्षर का जिस घोष से उच्चारण करना हो, उसका ध्यान नहीं रखना। (9) पढ़ने वाले पात्र का ध्यान न रखकर अयोग्य को पाठ देना। (10) आगम पाठ को अविधि से ग्रहण करना। (11) अकाल-जिस सूत्र का जो काल हो, उसका ध्यान न रखकर अकाल में स्वाध्याय करना । (12) कालिक-शास्त्र पठन के काल में स्वाध्याय नहीं करना।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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