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________________ अष्टम वर्ग - तृतीय अध्ययन ] 189} भावार्थ-दूसरे अध्ययन का उत्क्षेपक । श्री जम्बू स्वामी-“हे पूज्य! आठवें वर्ग के दूसरे अध्ययन में प्रभु महावीर ने क्या भाव कहे हैं ? कृपाकर बताइये।" श्री सुधर्मा स्वामी- “हे जम्बू! इस प्रकार उस काल उस समय में चंपा नाम की एक नगरी थी वहाँ पूर्णभद्र उद्यान था और कोणिक नाम का राजा वहाँ राज्य करता था। उस नगरी में श्रेणिक राजा की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता सकाली नाम की देवी थी। काली की तरह सकाली भी प्रव्रजित हई और बहत से उपवास आदि तप से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। फिर वह सुकाली आर्या अन्यदा किसी दिन आर्य चन्दना के पास आकर इस प्रकार बोली-'हे आर्ये ! आपकी आज्ञा होने पर मैं कनकावली तप को अंगीकार करके विचरना चाहती हूँ।' सती चन्दना की आज्ञा पाकर रत्नावली के समान सुकाली ने कनकावली तप का आराधन किया। विशेषता इसमें यह थी कि तीनों स्थानों पर अष्टम (तेले) किये, जबकि रत्नावली में षष्ठ (बेले) किये जाते हैं। एक परिपाटी में एक वर्ष पाँच महीने और बारह अहोरात्रियाँ लगती हैं। इस एक परिपाटी में 88 दिन का पारणा और 1 वर्ष 2 मास 14 दिन का तप होता है। चारों परिपाटियों का काल-पाँच वर्ष, नव महीने और अठारह दिन होता है। शेष वर्णन काली आर्या के समान है। नव वर्ष तक चारित्र का पालन कर यावत् वह भी सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गई।।2।। ।। इइ बिइयमज्झयणं-द्वितीय अध्ययन समाप्त ।। । तइयमज्झयण-तृतीय अध्ययन मूल एवं महाकाली वि। नवरं खुड्डागं सीहणिक्कीलियं तवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तं जहा चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छटुं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउत्थं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता छटुं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता दुवालसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारिता दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउद्दसमं करेइ, करित्ता
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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