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________________ अष्टम वर्ग - द्वितीय अध्ययन ] 187 } ऐसा सोचकर वह अगले दिन सूर्योदय होते ही जहाँ आर्यचंदना थी वहाँ आई और आर्यचंदना को वन्दना नमस्कार कर इस प्रकार बोली- “हे आर्ये ! आपकी आज्ञा हो तो मैं संलेखना झूषणा करते हुए विचरना चाहती हूँ ।" आर्यचंदना-“हे देवानुप्रिये ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो । सत्कार्य साधन में विलम्ब मत करो ।” तब आर्य चंदना की आज्ञा पाकर काली आर्या संलेखना झूषणा से यावत् विचरने लगी । काली आर्या ने आर्य चन्दनबाला आर्या के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और पूरे आठ वर्ष तक चारित्र-धर्म का पालन करके एक मास की संलेखना से आत्मा को झूषित कर साठ भक्त का अनशन पूर्ण कर जिस हेतु से संयम ग्रहण किया था, अपरिग्रह भाव से यावत् उसको अन्तिम श्वासोच्छ्वास तक पूर्ण कर वह काली आर्या सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हो गई ।।7।। ।। इइ पढममज्झयणं-प्रथम अध्ययन समाप्त ।। मूल बिइयमज्झयणं-द्वितीय अध्ययन उक्खेवओ बीयस्स अज्झयणस्स । एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी, पुण्णभद्दे चेइए, कोणिए राया तत्थ गं सेणियस्स रण्णो भज्जा कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया सुकाली नामं देवी होत्था। जहा काली तहा सुकाली विणिक्खंता, जाव बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरइ । तए णं सा सुकाली अज्जा अण्णया कयाइं जेणेव अज्जचंदणा अज्जा जाव “इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी कणगावली तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । " एवं जहा रयणावली तहा कणगावली वि, नवरं तिसु ठाणेसु अट्टमाइं करेइ, जहा रयणावलीए छट्ठाई । एक्काए परिवाडीए संवच्छरो, पंचमासा बारस य अहोरत्ता चउण्हं पंच वरिसा नव मासा अट्ठारस दिवसा, सेसं तहेव, नव वासा परियाओ जाव सिद्धा ।।2।। संस्कृत छाया - उत्क्षेपकः द्वितीयस्य अध्ययनस्य । एवं खलु जम्बू ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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