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________________ {XX} ग्यारहवाँ तप लघु सर्वतोभद्र प्रतिमा है। इसमें अनानुपूर्वी क्रम से 1 उपवास से 6 उपवास तक 5 लाइन की जाती है । एक परिपाटी में 75 दिन का तप और 25 पारणे होते हैं । इस प्रकार चार परिपाटी में तप की पूर्ण आराधना की जाती है। __ बारहवाँ महासर्वतोभद्र तप है। इसमें एक उपवास से 7 उपवास तक पूर्व कथित प्रकार से किये जाते हैं । एक परिपाटी में 196 दिन तप और 49 पारणे होते हैं । __तेरहवीं भद्रोत्तर प्रतिमा है। इस तप में 5, 6, 7, 8, 9 इस प्रकार अनानुपूर्वी से पाँच पंक्ति में तपस्या की एक परिपाटी पूर्ण होती है, जिसमें 6 मास 20 दिन का समय लगता है । तप के दिन 175 और 25 पारणे होते हैं। चौदहवाँ आयंबिल वर्धमान तप है। इसमें 1 से 100 तक आयंबिल बढ़ाये जाते हैं। पारणा के दिन बीच में उपवास किया जाता है। आयंबिल के कुल दिन 5050 और उपवास के 100 दिन होते हैं। साधारण सा दिखने पर भी यह तप बड़ा महत्त्वशाली और कठिन है। पन्द्रहवाँ मुक्तावली तप है। इसमें ऊँचे से ऊँचा 16 तक का तप होता है । एक परिपाटी में 285 दिन का तप और 60 पारणे होते हैं | चारों परिपाटियाँ 3 वर्ष और 10 मास में पूर्ण हो जाती हैं | पर्युषण में अंतगड़ का वाचन बहुत बार यह जिज्ञासा होती है कि पर्युषण में अन्तकृद्दशा का वाचन आवश्यक क्यों माना जाता है ? अन्य किसी सूत्र का वाचन क्यों नहीं किया जाता? बात ठीक है, शास्त्र सभी मांगलिक हैं और उनका पर्व दिनों में वाचन भी हो सकता है, कोई दोष की बात नहीं है। विचार केवल इतना ही है कि पर्वाधिराज के इन अल्प दिनों में वैसे सूत्र का वाचन होना चाहिये जो आठ ही दिनों में पूरा हो सके और आत्म-साधना की प्रेरणा देने में भी पर्याप्त हो, अंग या उपांग सूत्रों में ऐसा कोई अंग सूत्र नहीं जो इस मर्यादित काल में पूरा हो सके। अनुत्तरौपपातिक दशा है तो वह अति लघु होने के साथ इतनी प्रेरक सामग्री प्रस्तुत नहीं करता । फिर उसमें वर्णित साधक अनुत्तर विमान के ही अधिकारी होते हैं, मोक्ष के नहीं । परन्तु अन्तकृद्दशा में ये दोनों बातें हैं । वह अतिलघु या महत् आकार में नहीं है, साथ ही उसमें ऐसे ही साधकों की जीवन गाथा है जो तप-संयम से कर्मक्षय कर पूर्णानंद के भागी बन चुके हैं । अन्तकृद्दशा के उद्देश-समुद्देश का काल भी 8 दिन का है और पर्युषण का आष्टाह्निक पर्व भी अष्टगुणों की प्राप्ति एवं अष्ट कर्मों की क्षीणता के लिये है। अत: पर्युषण में इसी का वाचन उपयुक्त है। प्रस्तुत सूत्र में छोटे-बड़े ऐसे साधकों की जीवन गाथा बताई है जिनसे आबाल वृद्ध सब नरनारी प्रेरणा ले सकें और अपनी योग्यता के अनुसार साधना कर आत्मा का विकास कर सकें । यही
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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