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________________ षष्ठ वर्ग - पन्द्रहवाँ अध्ययन ] 157} राजा अभवत्, तस्य खलु विजयस्य राज्ञः श्री नाम देवी आसीत् । वर्ष्या । तस्य खलु विजयस्य राज्ञः पुत्रः श्रीदेव्याः आत्मज: अतिमुक्त: नाम कुमारः आसीत् । सुकोमल: । तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमण: भगवान् महावीर: यावत् श्रीवने विहरति । तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवत: महावीरस्य ज्येष्ठ: अन्तेवासी इन्द्रभूति, यथा प्रज्ञप्त्यां तथा पोलासपुरे नगरे उच्चनीचं यावत् अटति ।।1।। अन्वयार्थ-उक्खेवओ पण्णरसमस्स अज्झयणस्स = पन्द्रहवें अध्ययन का उत्क्षेपक । एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं = हे जम्बू! उस काल, तेणं समएणं पोलासपुरे = उस समय में पोलासपुर नामक, नयरे, सिरीवणे उज्जाणे = नगर व श्रीवन नामक उद्यान था। तत्थ णं पोलासपुरे नयरे = उस पोलासपुर नामक नगर में, विजए नामं राया होत्था । = विजय नामक राजा राज्य करता था। तस्स णं विजयस्स रण्णो = उस विजय नामक राजा की, सिरी नामं देवी होत्था = उसकी श्रीदेवी नाम की महारानी थी, वण्णओ = जो कि वर्णन करने योग्य थी। तस्स णं विजयस्स रण्णो पुत्ते = महाराज विजय का पुत्र और, सिरीए देवीए अत्तए अइमुत्ते = श्री देवी का आत्मज अतिमुक्त, नामं कुमारे होत्था = नामक कुमार था, जो कि, सुकुमाले = सुकोमल था । तेणं कालेणं तेणं समएणं = उस काल उस समय में, समणे भगवं महावीरे जाव = श्रमण भगवान महावीर विचरते हुए, सिरीवणे विहरइ = श्रीवन में पधारे । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स = उस काल उस समय श्रमण, भगवओ महावीरस्स जेटे = भगवान महावीर के ज्येष्ठ, अंतेवासी इंदभूई = शिष्य इन्द्रभूति, जहा पण्णत्तीए जाव पोलासपुरे = भगवती सूत्र के वर्णन के अनुसार यावत् पोलासपुर, नयरे उच्चणीय जाव अडइ = नगर में बड़े छोटे कुलों में भ्रमण करने लगे।।1।। भावार्थ-श्री जम्बू स्वामी- “हे भगवन् ! चौदह अध्ययनों का भाव मैंने सुना । अब पन्द्रहवें अध्ययन में प्रभु ने क्या भाव कहा है, कृपा कर बतलावें।" आर्य सुधर्मा कहते हैं-“निश्चय ही हे जम्बू! उस काल उस समय में पोलासपुर नामक नगर था, वहाँ श्रीवन नामक उद्यान था। उस नगर में विजय नाम का राजा था जिसकी श्रीदेवी नाम की महारानी थी, जो वर्णन योग्य थी। महाराज विजय का पुत्र और श्रीदेवी का आत्मज अतिमुक्त नाम का एक कुमार था जो बड़ा सुकुमाल था। उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर विचरते हुए श्रीवन उद्यान में पधारे। उस काल उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति का भगवती सूत्र में जैसे भगवान से पूछकर भिक्षार्थ जाने का वर्णन किया गया वैसे ही यावत् उस पोलासपुर नगर में वे छोटे-बड़े कुलों में सामूहिक भिक्षा हेतु भ्रमण करने लगे।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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