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________________ षष्ठ वर्ग - तृतीय अध्ययन ] 147} अप्पेगइया अक्कोसंति, = ऐसा कहकर कोई गाली देते, अप्पेगइया हीलंति, णिंदंति = कोई हीलना या निन्दा करते, खिंसंति, गरिहंति, तज्जेंति, = खिजाते, गर्हा करते, तर्जना करते, तालेंति = कोई ताड़ना भी कर देते T भावार्थ-इसके पश्चात् अर्जुन मुनि बेले की तपस्या के पारणे के दिन प्रथम प्रहर में ध्यान करते एवं तीसरे प्रहर में राजगृह नगर में भिक्षार्थ भ्रमण करते । उस समय उस अर्जुन मुनि को राजगृह नगर में उच्च-नीच मध्यम कुलों में भिक्षार्थ घूमते हुए देखकर नगर के अनेक नागरिक स्त्री-पुरुष आबाल वृद्ध इस प्रकार कहते “इसने मेरे पिता को मारा है, इसने मेरी माता को मारा है, भाई को मारा है, बहन को मारा है, भार्या को मारा है, पुत्र को मारा है, कन्या को मारा है, पुत्रवधू को मारा है, एवं इसने मेरे अमुक स्वजन संबंधी को मारा है। " ऐसा कहकर कोई गाली देता, कोई हीलना करता, अनादर करता, निन्दा करता, कोई जाति आदि का दोष बताकर गर्हा करता, कोई भय बताकर तर्जना करता और कोई थप्पड़, ईंट, पत्थर, लाठी आदि से भी मारता । सूत्र 17 मूल तए णं से अज्जुणए अणगारे तेहिं बहूहिं इत्थीहि य पुरिसेहि य डहरेहिं य महल्लेहिं य जुवाणएहिं य आओसेज्जमाणे जाव ताज्जमाणे तेसिं मणसा वि अप्पउस्समाणे सम्मं सहइ, सम्म खमइ, सम्मं तितिक्खइ, सम्मं अहियासेइ, सम्मं सहमाणे, खममाणे तितिक्खमाणे, अहियासमाणे रायगिहे नयरे उच्चणीयमज्झिमकुलाई अडमाणे जइ भत्तं लभइ तो पाणं न लभइ, जइ पाणं लभइ तो भत्तं न लभइ। तए णं से अज्जुणए अणगारे अदीणे, अविमणे, अकलुसे, अणाइले, अविसाई, अपरितंतजोगी अडइ, अडित्ता रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे जहा गोयमसामी जाव पडिदंसेइ, पडिदंसित्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुणा समाणे, अमुच्छिए बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणेणं तमाहारं आहारेइ ।। 17 ।।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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