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________________ षष्ठ वर्ग - तृतीय अध्ययन ] 131 } अट्ठाए सइरं = काष्ठ के लिये, जल के लिये अथवा फल फूलादि के लिए, णिग्गच्छउ मा णं तस्स = एक बार भी बाहर मत निकलो जिससे, सरीरस्स वावत्ती भविस्सइ = कि तुम्हारे शरीर का नाश न होवे । त्ति कट्टु दोच्चं पि तच्चं पि घोसणं घोसेह = इस प्रकार दूसरी बार भी, तीसरी बार भी घोषणा करो । घोसित्ता खिप्पामेव ममेयं = घोषणा करके शीघ्र ही मुझे इसकी, पच्चप्पिणह = वापस सूचना दो, तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा = तदनन्तर उन आज्ञाकारी पुरुषों ने, जाव पच्चप्पिणंति = यावत् वापस सूचित कर दिया ॥17॥ भावार्थ-उस समय राजगृह नगर में शृंगाटकों में राजमार्गों आदि सभी स्थानों में बहुत से लोग परस्पर इस प्रकार बोलने लगे-“हे देवानुप्रियों ! अर्जुनमाली मुद्गरपाणि यक्ष के वशीभूत होकर राजगृह नगर के बाहर एक स्त्री और 6 पुरुषों, इस प्रकार सात व्यक्तियों को प्रतिदिन मार रहा है।” इसके बाद जब श्रेणिक राजा ने यह बात सुनी तो उन्होंने अपने सेवक पुरुषों को बुलाया और उनको इस प्रकार कहा- -"हे देवानुप्रियों ! राजगृह नगर के बाहर अर्जुनमाली यावत् छः पुरुष और एक स्त्री इस प्रकार सात व्यक्तियों को प्रतिदिन मारता हुआ घूम रहा है। इसलिए तुम सारे नगर में मेरी आज्ञा को इस प्रकार प्रसारित करो कि यदि नागरिकों की इच्छा जीवित रहने की हो तो कोई तृण के लिये, काष्ठ, पानी अथवा फल फूल के लिए राजगृह नगर के बाहर न निकले । यदि वे कहीं बाहर निकले, तो ऐसा न हो कि उनके शरीर का विनाश हो जाय । हे देवानुप्रियों ! इस प्रकार दो तीन बार घोषणा करके मुझे सूचित करो। इस प्रकार राजाज्ञा पाकर राज्याधिकारियों ने राजगृह नगर में घूम-घूमकर उपर्युक्त राजाज्ञा की घोषणा की और घोषणा करके राजा को सूचित कर दिया । सूत्र 8 मूल तत्थ णं रायगिहे नयरे सुदंसणे नामं सेठ्ठी परिवसइ, अड्ढे जाव अपरिभू । तणं से सुदंसणे समणोवासए यावि होत्था । अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे जाव विहरइ । तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग जाव महापहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ - जाव किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तए णं तस्स सुदंसणस्स बहुजणस्स अंतिए एयमद्वं सोच्चा निसम्म अयं अज्झत्थिए जाव समुप्पण्णे । एवं खलु समणे भगवं महावीरे जाव विहरइ । तं गच्छामि णं समणं भगवं
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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