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________________ { 126 [अंतगडदसासूत्र बंधुमईए भारियाए सद्धिं = बन्धुमती भार्या के साथ, एज्जमाणं पासइ पासित्ता = आते हुए देखा और देखकर, अण्णमण्णं एवं वयासी = आपस में यों बोले-, एस खलु देवाणुप्पिया! = हे देवानुप्रियों!, अज्जुणए मालागारे बंधुमईए = यह अर्जुन मालाकार बन्धुमती, भारियाए सद्धिं इहं हव्वमागच्छइ = भार्या के साथ यहाँ शीघ्र आ रहा है, इसलिये, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अज्जुणयं मालागारं = हे देवानुप्रियों! आनंद इसी में है कि अर्जुन मालाकार, अवओडयबंधणयं करित्ता = को उल्टी मुश्क से बाँधकर उसकी, बंधुमईए भारियाए सद्धिं = बन्धुमती स्त्री के साथ, विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणाणं विहरित्तए = अनेक भोगों को भोगते हुए विचरण करें, त्तिकट्ट एयमहूँ अण्णमण्णस्स = इस प्रकार विचार कर उन्होंने परस्पर, पडिसुणेति, पडिसुणित्ता = एक-दूसरे की बात सुनी व सुनकर, कवाडंतरेसुनिलुक्कंति, णिच्चला णिप्फंदा = कपाट के पीछे छिप गये, बिल्कुल अचल व स्पन्दन रहित होकर, तुसिणीया पच्छण्णा चिटुंति = चुपचाप छिपकर बैठ गये।।4।। भावार्थ-उस समय पूर्वोक्त ललित' गोष्ठी के छ: गौष्ठिक पुरुष मुद्गरपाणि यक्ष के यक्षायतन में आकर आमोद-प्रमोद एवं परस्पर खेलकूद करने लगे। उधर अर्जुनमाली अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ फूल-संग्रह करके उनमें से कुछ उत्तम फूल छाँटकर उनसे नित्य नियम के अनुसार मुद्गरपाणि यक्ष की पूजा करने के लिये यक्षायतन की ओर चला । उन छ: गौष्ठिक पुरुषों ने अर्जुनमाली को बंधुमती भार्या के साथ यक्षायतन की ओर आते हुए देखा । देखकर परस्पर विचार करके निश्चय किया-'हे मित्रों! यह अर्जुनमाली अपनी बंधुमती भार्या के साथ इधर ही आ रहा है। हम लोगों के लिये यह उत्तम अवसर है कि ऐसे मौके पर इस अर्जुन माली को तो औंधी मुश्कियों (दोनों हाथों को पीठ पीछे) से बलपूर्वक बान्धकर एक ओर पटक दें और फिर इसकी इस सुन्दर स्त्री बन्धुमती के साथ खूब काम-क्रीड़ा करें।' यह निश्चय करके वे छहों उस यक्षायतन के किवाड़ों के पीछे छिप कर निश्चल खड़े हो गये और उन दोनों के यक्षायतन के भीतर प्रविष्ट होने की श्वास रोककर प्रतीक्षा करने लगे। सूत्र 5 मूल तए णं से अज्जुणए मालागारे बंधुमईए भारियाए सद्धिं जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, आलोए पणामं करेइ, करित्ता महरिहं पुप्फच्चयणं करेइ करित्ता, जाणुपायपडिए पणामं करेइ । तए णं ते छ गोहिल्ला पुरिसा दवदवस्स कवाडंतरेहिंतो णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता, अज्जुणयं मालागारं गिण्हित्ता अवओडयबंधणं करेंति करित्ता, बंधुमईए मालागारीए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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