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________________ { 124 [अंतगडदसासूत्र अन्वायार्थ-तत्थ णं रायगिहे नयरे ललिया नाम = वहाँ राजगृह नगर में ललिता नाम की, गोट्टी परिवसइ = गोष्ठी (मित्र मंडली) रहती थी, अड्डा जाव अपरिभूया = वह ऋद्धि संपन्न यावत् किसी से पराभव पाने वाली नहीं थी, जं कयसुकया यावि होत्था = जो राजा के अनुग्रह के कारण मनमाने काम करने में स्वच्छन्द थी। तए णं रायगिहे नयरे अण्णया = फिर राजगृह नगर में बाद में किसी, कयाई पमोए घुटे यावि होत्था = दिन प्रमोदोत्सव की घोषणा हुई। तए णं से अज्जुणए मालागारे = तत्पश्चात् अर्जुन मालाकार ने सोचा, ‘कल्लं पभूयतरएहिं पुप्फेहिं कज्जं' = "कल बहुत फूलों की माँग होगी”, इति कट्ट पच्चूस-काल-समयंसि = यह सोचकर उसने प्रातः काल जल्दी, बंधुमईए भारियाए सद्धिं = उठकर बन्धुमती भार्या को साथ लिया, पच्छिपिडगाइं गिण्हइ, गिण्हित्ता = बाँस की छाब (टोकरी) ली, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, = लेकर अपने घर से निकला, पडिणिक्खमित्ता रायगिह = निकलकर राजगृह, नयरं मज्झं मज्झेणं णिग्गच्छइ = नगर के मध्य-मध्य से चलता हुआ निकल जाता है, णिग्गच्छित्ता जेणेव पुप्फारामे = तथा निकलकर जहाँ फूलों का बगीचा है, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता = वहाँ आता है, वहाँ आकर, बंधुमईए भारियाए सद्धिं = अपनी बन्धुमती पत्नी के साथ, पुप्फुच्चयं करेइ = पुष्पों का चयन शुरु कर देता है ।। 3 ।। भावार्थ-उस राजगृह नगर में 'ललिता' नाम की एक गोष्ठी (मित्र मंडली) थी। जिसके अत्यन्त समृद्ध और दूसरों से अपराभूत ऐसे कुछ व्यक्ति सदस्य थे। किसी समय नगर के राजा का कोई हित-कार्य सम्पादन करने के कारण राजा ने उस मित्र मंडली पर प्रसन्न होकर अभयदान दे दिया कि वे अपनी इच्छानुसार कोई भी कार्य करने में स्वतन्त्र हैं। राज्य की ओर से उन्हें पूरा संरक्षण था इस कारण यह गोष्ठी बहुत उच्छृखल और स्वच्छन्द बन गई। एक दिन राजगृह नगर में एक उत्सव मनाने की घोषणा हुई। इस पर अर्जुनमाली ने अनुमान लगाया कि कल इस उत्सव के अवसर पर फूलों की भारी माँग होगी। इसलिए उस दिन वह प्रात:काल जल्दी ही उठा और बांस की छबड़ी लेकर अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ जल्दी घर से निकल कर नगर में होता हुआ अपनी फुलवाड़ी में पहुंचा और अपनी पत्नी के साथ फूलों को चुन-चुन कर एकत्रित करने लगा। सूत्र 4 मूल तएणं तीसे ललियाए गोडीए छ, गोहिल्ला पुरिसा जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागया अभिरममाणा चिट्ठति। तए णं से अज्जुणए मालागारे बन्धुमईए भारियाए सद्धिं पुप्फुच्चयं करेइ, करित्ता अग्गाइं वराई पुप्फाइं गहाय जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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