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________________ { 118 [अंतगडदसासूत्र तेणं कालेणं तेणं समएणं = उस काल उस समय, समणे भगवं महावीरे आइगरे = श्रमण भगवान महावीर धर्म की आदि करने वाले, गुणसिलए जाव विहरइ = गुणशील उद्यान में यावत् पधारे, परिसा णिग्गया = धर्म कथा सुनकर परिषद् लौट गई। तए णं से मंकाई गाहावई = तब वह मंकाई गाथापति, इमीसे कहाए लद्धढे = प्रभु के आने का वृत्तान्त सुनकर, जहा पण्णत्तीए गंगदत्ते तहेव = जैसे भगवती सूत्र में गंगदत्त, वैसे ही।।1।। ___ इमो वि जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठवित्ता = यह भी ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का कार्यभार सौंपकर, पुरिससहस्सवाहिणीए सीयाए = हजार पुरुषों से उठाई जाने वाली पालकी में बैठकर दीक्षार्थ, णिक्खंते जाव अणगारे जाए = निकल पड़े। यावत् अनगार हो गए। ईरियासमिए जाव गुत्तबंभयारी = ईर्यासमितियुक्त यावत् गुप्त ब्रह्मचारी बन गये । तए णं से मंकाई अणगारे = तब वह मंकाई अनगार, समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए = श्रमण भगवान महावीर के तथारूप स्थविरों के पास, सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ = सामायिक आदि ग्यारह अंगों का, अध्ययन करता है। सेसं जहा खंदयस्स = शेष वर्णन स्कंदक के समान जानना चाहिये। उन्होंने, गुणरयणं तवोकम्मं = स्कंदक के समान गुणरत्न तप का आराधन किया । सोलसवासाइं परियाओ = सोलह वर्ष की दीक्षा पाली, तहेव विपुले सिद्ध = और उसी तरह विपुल पर्वत पर सिद्ध हो गये।।1।। भावार्थ-श्री जम्बू-“हे भगवन् ! पाँचवें वर्ग का भाव सुना, अब छठे वर्ग के श्रमण भगवान महावीर ने क्या भाव कहे हैं सो कृपा कर कहिये।" श्री सुधर्मा स्वामी-“हे जम्बू! श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने छठे वर्ग के सोलह अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं-1. मंकाई, 2. किंकम, 3. मुद्गरपाणि, 4. काश्यप, 5. क्षेमक, 6. धृतिधर, 7. कैलाश, 8. हरिचन्दन, 9. वारत्त, 10 सुदर्शन, 11. पुण्यभद्र, 12. सुमनभद्र, 13. सुप्रतिष्ठ, 14. मेघ कुमार, 15. अतिमुक्त कुमार, 16. अलक्ष्य कुमार । श्री जम्बू-“हे भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने छठे वर्ग के 16 अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? कृपा कर कहिये। आर्य श्री सुधर्मा स्वामी-“हे जम्बू! उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था । वहाँ गुणशीलक नाम का चैत्य-उद्यान था । उस नगर में श्रेणिक राजा राज्य करते थे। वहाँ मंकाई नाम का एक गाथापति रहता था, जो अत्यन्त समृद्ध यावत् अपरिभूत था यानी दूसरों से पराभूत होने वाला नहीं था। उस काल उस समय में धर्म की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर गुणशीलक उद्यान में यावत् पधारे। प्रभु महावीर का आगमन सुनकर जन परिषद् दर्शनार्थ एवं धर्मोपदेश श्रवणार्थ प्रभु की सेवा में आई।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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