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________________ पंचम वर्ग - 9-10 अध्ययन ] 115} करने योग्य थी। अरहा अरिट्ठणेमी समोसढे = एकदा भगवान अरिष्टनेमि वहाँ पधारे। कण्हे णिग्गए मूलसिरी वि णिग्गया = कृष्ण वन्दन करने गये, मूलश्री भी गई, जहा पउमावई = पद्मावती की तरह। नवरं देवाणुप्पिया! = विशेष-बोली-“हे देवानुप्रिय!, कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि = कृष्ण वासुदेव को पूछती हूँ" (पूछकर), जाव सिद्धा = (दीक्षित हुई) यावत् सिद्ध हो गई। एवं मूलदत्ता वि = इसी प्रकार मूलदत्ता भी।।2।। भावार्थ-श्री जम्बू-“हे भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने आठवें अध्ययन के जो भाव कहे-वे मैंने आपके मुखारविन्द से सुने । आगे श्रमण भगवान महावीर ने नवमें अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? यह कृपाकर बताइये।” श्री सुधर्मा स्वामी-“हे जम्बू ! उस काल उस समय में द्वारिका नगरी के पास एक रैवतक नाम का पर्वत था जहाँ एक नन्दन वन उद्यान था । वहाँ कृष्ण-वासुदेव राज्य करते थे। उन कृष्ण वासुदेव के पुत्र और रानी जाम्बवती देवी के आत्मज शाम्ब-नाम के कुमार थे जो सर्वांग सुन्दर थे। उन शाम्बकुमार के मूलश्री नाम की भार्या थी, जो वर्णन योग्य थी, अत्यन्त सुन्दर एवं कोमलांगी थी। ____एक समय अरिष्टनेमि वहाँ पधारे । कृष्ण वासुदेव उनके दर्शनार्थ गये । 'मूल श्री' देवी भी पद्मावती' के पूर्व वर्णन के समान प्रभु के दर्शनार्थ गई। भगवान ने धर्मोपदेश दिया, धर्म कथा कही। जिसे सुनने को जन परिषद् भी आई। धर्म कथा सुनकर जन परिषद् एवं श्री कृष्ण तो अपने अपने घर लौट गये । मूलश्री ने वहीं रुककर भगवान से प्रार्थना की कि-"हे भगवन् ! मैं कृष्ण वासुदेव की आज्ञा लेकर आपके पास श्रमण धर्म में दीक्षित होना चाहती हूँ।" __ भगवान ने कहा-“हे देवानुप्रिय! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो।' इसके बाद ‘मूलश्री' अपने भवन को लौटी। 'मूलश्री' के पति श्री शाम्ब कुमार चूंकि पहले ही प्रभु के चरणों में दीक्षित हो गये थे अत: ‘मूलश्री' अपने श्वसुर श्रीकृष्ण वासुदेव की आज्ञा लेकर ‘पद्मावती' के समान दीक्षित हुई । एवं उन्हीं के समान तप संयम की आराधना करके सिद्ध पद को प्राप्त किया। 'मूलश्री' के ही समान मूलदत्ता' का भी सारा वृत्तान्त जानना चाहिये । यह शाम्ब कुमार की दूसरी रानी थी।।2।। ।। इइ 9-10 अज्झयणाणि-9-10 अध्ययन समाप्त ।। ।। इइ पंचमो वग्गो-पंचम वर्ग समाप्त ।।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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