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________________ (उद्गार .आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. धर्मशास्त्र की महिमा शास्त्र किसे कहते हैं ? इसकी अगर शाब्दिक परिभाषा की जाये तो भाषा शास्त्र के अनुसार "शासन करने वाले” या “मानव मन को अनुशासित करने वाले” ग्रन्थ को 'शास्त्र' कहते हैं | जो तद् तद् विषयानुकूल अनेक प्रकार के होते हैं। जैसे-अर्थशास्त्र, कामशास्त्र, भाषाशास्त्र, समाजशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, वास्तुशास्त्र, रसायनशास्त्र, नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र आदि । उपर्युक्त अन्य शास्त्र जहाँ मनुष्य की भौतिक इच्छा, शाब्दिक ऊहापोह, रस परिविज्ञान एवं कामादि लालसा को जागृत कर उसे स्वार्थ परायण और संघर्षशील बनाते हैं, वहाँ 'धर्मशास्त्र' मानव को भौतिक प्रपंच से मोड़कर कर्त्तव्यपरायण, आत्माभिमुखी और विश्व हितैषी बनाता है । वह मानव की पापानुबन्धी बहिर्मुखी कलुषित मनोवृत्ति को दबाकर उसे पुण्यानुबन्धी अन्तर्मुखी बनने की प्रेरणा देता है । जैसे पारस का सम्पर्क लौह को बहुमूल्य सुवर्ण बना देता है, वैसे ही धर्मशास्त्र भी आत्म-परायण नर को नारायण बना देता है. इसलिए किसी विद्वान् ने ठीक ही कहा हैश्लोको वरं परम तत्त्व-पथ प्रकाशी, न व्यन्थ-कोटि-पठनं जन-रंजनाय । संजीवनीति वरमौषधमेकमेव, व्यर्थश्रमस्य जननी न तु मूल-भारः 11 अर्थात् परम तत्त्व के मार्ग को बताने वाला एक श्लोक भी अच्छा, किन्तु जन-रंजन के लिए करोड़ों ग्रन्थों का पढ़ना भी श्रेष्ठ नहीं । संजीवनी जड़ी का एक टुकड़ा भी अच्छा, किन्तु व्यर्थ में भार वहन कराने वाले मूले का भार हितकर नहीं। धर्म शास्त्र की इस महिमा के कारण ही महर्षियों ने इसकी श्रति तक को दुर्लभ बताया है। जैसा कि कहा है "सुई धम्मस्स दुल्लहा” धर्म का सुनना दुर्लभ है । वस्तुत: तो संसार को सन्मार्ग पर ले चलने का सारा श्रेय धर्म शास्त्र को ही है।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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