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________________ पंचम वर्ग प्रथम अध्ययन ] 99} जोहिट्ठिल्लपामोक्खाणं : = की ओर युधिष्ठिर आदि, पंचण्हं पंडवाणं पंडुरायपुत्ताणं = पांडुराज के पुत्र पाँचों पाण्डवों के, पासं पंडुमहुरं संपत्थिए = पास पांडुमथुरा को जाते हुए, कोसंबवणकाणणे नग्गोहवरपायवस्स = कोशांबवन-उद्यान में वटवृक्ष, अहे पुढविसिलापट्टए = के नीचे पृथ्वी शिला के पट्ट पर, पीयवत्थपच्छाइयसरीरे = पीताम्बर ओढ़े हुए (सोओगे), जरकुमारेणं = तब जराकुमार के द्वारा, , त्तिक्खेणं कोदंड-विप्पमुक्केणं इसुणा = धनुष से छोड़े हुए तीक्ष्ण बाण से, वामे पाए विद्धे समाणे = बायें पैर में बींधे हुए होकर, कालमासे कालं किच्चा तच्चाए = काल के समय काल करके तीसरी, वालुयप्पभाए पुढवीए जाव उववज्जिहिसि = बालुका प्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होओगे । भावार्थ-तब कृष्ण वासुदेव अर्हन्त अरिष्टनेमि को इस प्रकार बोले- “हे भगवन् ! यहाँ से काल के समय काल करके मैं कहाँ जाऊँगा, कहाँ उत्पन्न होऊँगा ?" इस पर अर्हन्त नेमिनाथ ने कृष्ण वासुदेव को इस तरह कहा- “हे कृष्ण ! तुम सुरा, अग्नि और द्वैपायन के कोप के कारण इस द्वारिका नगरी के जल कर नष्ट हो जाने पर और अपने माता-पिता एवं स्वजनों का वियोग हो जाने पर रामबलदेव के साथ दक्षिणी समुद्र के तट की ओर पाण्डुराजा के पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव इन पाँचों पाण्डवों के साथ पाण्डु मथुरा की ओर जाओगे। रास्ते में विश्राम लेने के लिए कौशाम्ब वन-उद्यान में अत्यन्त विशाल एक वटवृक्ष के नीचे, पृथ्वी शिलापट्ट पर पीताम्बर ओढ़कर तुम सो जाओगे । उस समय मृग के भ्रम में जराकुमार द्वारा चलाया हुआ तीक्ष्ण तीर तुम्हारे बाएँ पैर में लगेगा। इस तीक्ष्ण तीर से बिद्ध होकर तुम काल के समय काल करके वालुकाप्रभा नामक तीसरी पृथ्वी में जन्म लोगे। सूत्र 6 मूल तए णं कण्हे वासुदेवे अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म ओहय जाव झियाइ । " कण्हाइ !" अरहा अरिट्ठणेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-“मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! ओहय जाव झियाहि । एवं खलु तुमं देवाणुप्पिया ! तच्चाओ पुढवीओ उज्जलियाओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबूद्दीवे भारहेवासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए पुंडेसु जणवएसु सयदुवारे बारसमे अममे नामं अरहा भविस्ससि। तत्थ तुमं बहूइं वासाइं केवलपरियायं पाउणित्ता सिज्झिहिसि ।” संस्कृत छाया - ततः कृष्णो वासुदेवः अर्हतः अरिष्टनेमे: अंतिके एतमर्थं श्रुत्वा निशम्य अपहतो यावत् ध्यायति । कृष्ण ! अर्हन् अरिष्टनेमिः कृष्णं वासुदेवं एवमवदत् -मा खलु !
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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