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________________ पंचम वर्ग प्रथम अध्ययन ] 97 } पुव्वभवे नियाणकडा, से एएणद्वेणं कण्हा एवं वुच्चइ-न एवं भूयं जाव पव्वइस्संति।।4।। संस्कृत छाया - तत् न खलु कृष्ण ! एवं भूतं वा भव्यं भविष्यति वा यत् न वासुदेवाः त्यक्त्वा हिरण्यं यावत् प्रव्रजिष्यन्ति । अथ केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते न एवं भूतं वा यावत् प्रव्रजिष्यन्ति ? कृष्ण ! अर्हन् अरिष्टनेमी कृष्णं वासुदेवम् एवमवदत्-एवं खलु कृष्ण ! सर्वेऽपि च खलु वासुदेवाः पूर्वभवे कृतनिदानाः, अथ एतदर्थेन कृष्ण ! एवमुच्यते-न एवं भूतं यावत् प्रव्रजिष्यन्ति ।।4।। अन्वायार्थ-“तं नो खलु कण्हा ! एवं भूयं वा = हे कृष्ण ! ऐसा न हुआ है, भव्वं वा भविस्सइ वा जण्णं = होता है और न होगा कि, वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं जाव = वासुदेव हिरण्यादि छोड़कर, पव्वइस्संति ।” = यावत् दीक्षा ग्रहण करें । से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ = (श्री कृष्ण ने पूछा)-भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि, न एवं भूयं वा जाव पव्वइस्संति ? = ऐसा कभी नहीं हुआ और कभी होगा भी नहीं कि यावत् वासुदेव प्रव्रज्या ग्रहण करेंगे ? कण्हाइ ! अरहा अरिट्ठणेमी = श्री कृष्ण को सम्बोधित कर भगवान ने, कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - = कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार कहा-, एवं खलु कण्हा ! सव्वे वि य णं वासुदेवा = हे कृष्ण ! निश्चय ही सब वासुदेव, पुव्वभवे नियाणकडा = पूर्व जन्म में निदान किये हुए होते हैं, से एएणट्टेणं कण्हा एवं वुच्चइ -= इसलिये कृष्ण ! ऐसा कहा जाता है-, न एवं भूयं जाव पव्वइस्संति = कभी ऐसा हुआ नहीं कि यावत् वासुदेव प्रव्रज्या - दीक्षा ग्रहण करेंगे ।। 4 ।। भावार्थ-प्रभु ने फिर कहा-“हे कृष्ण ! ऐसा कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं कि वासुदेव अपने भव में धन-धान्य-स्वर्ण आदि सम्पत्ति छोड़कर मुनिव्रत ले ले । वासुदेव दीक्षा लेते ही नहीं, नहीं एवं भविष्य में कभी लेंगे भी नहीं ।" श्री कृष्ण- “भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि ऐसा कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं। इसका क्या कारण है ?" अर्हन्त नेमिनाथ ने कृष्ण वासुदेव को इस प्रकार उत्तर दिया- “हे कृष्ण ! निश्चय ही सभी वासुदेव पूर्व भव में निदान कृत (नियाणा करने वाले) होते हैं, इसलिए मैं ऐसा कहता हूँ ! कि ऐसा कभी हुआ नहीं होता नहीं और होगा भी नहीं कि वासुदेव कभी अपनी सम्पत्ति को छोड़कर प्रव्रज्या अंगीकार करें।” सूत्र 5 मूल तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठणेमिं एवं वयासी - अहं णं भंते! इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिस्सामि ? कहिं
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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