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________________ { 84 [अंतगडदसासूत्र = इस प्रकार हे जम्बू ! उस काल व, तेणं समएणं बारवईए नयरीए = उस समय द्वारिका नगरी में, जहा पढमे जाव विहरइ = जैसा प्रथम अध्ययन में कहा गया है, उसी प्रकार भगवान नेमिनाथ, विचरण करते हुए वहाँ पधारे, तत्थ णं बारवईए बलदेवे नामं राया होत्था, वण्णओ = वहाँ द्वारिका नगरी में बलदेव, नामक राजा था, जो कि वर्णनीय था। तस्स णं बलदेवस्स रण्णो = उस बलदेव राजा के, धारिणी नामं देवी होत्था, वण्णओ। = धारिणी नाम की रानी थी, वह बहुत वर्णनीय थी, तए णं सा धारिणी सीहं सुमिणे = फिर उस धारिणी रानी ने सिंह का स्वप्न देखा, जहा गोयमे = तदनन्तर पुत्र जन्म आदि का वर्णन गौतम कुमार की तरह जानना चाहिये, नवरं सुमुहे नामं कुमारे = विशेष, कुमार का नाम सुमुख रखा गया, पण्णासं कण्णाओ पण्णासं दाओ = पचास कन्याओं का पाणिग्रहण किया, पचास (करोड़) दहेज प्राप्त हुआ, चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ = चौदह पूर्व का अध्ययन किया, वीसं वासाइं परियाओ = बीस वर्ष दीक्षा पर्याय चली, सेसं तं चेव जाव सेत्तुंजे = शेष उसी प्रकार यावत् शत्रुञ्जय पर्वत पर, सिद्धे निक्खेवओ = सिद्ध हुए। निक्षेपक। भावार्थ-यहाँ उत्क्षेपक शब्द के प्रयोग से यह आशय समझना चाहिए कि श्री जम्बू स्वामी अपने गुरु सुधर्मास्वामी से पूर्वानुसार फिर आगे पूछते हैं- "हे भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने अन्तकृद्दशांग सूत्र के तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन के जो भाव कहे वे मैंने आपसे सुने । हे भगवन् ! अब आगे नवमें अध्ययन के उन्होंने क्या भाव कहे हैं? यह भी मुझे बताने की कृपा करें।" श्री सुधर्मा स्वामी-हे जम्बू! उस काल उस समय में द्वारिका नामक एक नगरी थी जिसका वर्णन पूर्व में किया जा चुका है। एक दिन भगवान अरिष्टनेमि तीर्थङ्कर परम्परा से विचरते हुए उस नगरी में पधारे। द्वारिका नगरी में बलदेव नाम के एक राजा थे। उनकी रानी का नाम 'धारिणी' था, वह अत्यन्त सुकोमल, सुन्दर एवं गुण सम्पन्न थी। एक समय सुकोमल शय्या पर सोई हुई उस धारिणी ने रात को स्वप्न में सिंह देखा । स्वप्न देखकर वह जग गई। उसी समय अपने पति के पास जाकर स्वप्न का वृत्तान्त उन्हें सुनाया। गर्भ-समय पूर्ण होने पर स्वप्न के अनुसार उनके यहाँ एक पुण्यशाली पुत्र उत्पन्न हुआ। इसके जन्म, बाल्यकाल आदि का वर्णन गौतम कुमार के समान समझना । विशेष में उस बालक का नाम सुमुख' रक्खा गया। युवा होने पर पचास कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण संस्कार हुआ। विवाह में पचास-पचास करोड़ सोनैया आदि का दहेज उसे मिला। भगवान अरिष्टनेमि के किसी समय वहाँ पधारने पर उनका धर्मोपदेश सुनकर सुमुख कुमार उनके पास दीक्षित हो गया । दीक्षित होकर चौदह पूर्व का ज्ञान पढ़ा । बीस वर्ष तक श्रमण दीक्षा पाली । अन्त में गौतम कुमार की तरह संलेखणा यावत् संथारा करके शत्रुजय पर्वत पर सिद्ध हुए। हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने अन्तकृद्दशा के तीसरे वर्ग के नवमें अध्ययन का उपर्युक्त भाव कहा। ।। इइ नवममज्झयणं-नवम अध्ययन समाप्त ।।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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