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________________ तृतीय वर्ग - आठवाँ अध्ययन ] 81} भावार्थ-तदनन्तर कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्टनेमि को वन्दना नमस्कार कर जहाँ अभिषेकयोग्य हस्तिरत्न था वहाँ पहुँच कर उस हाथी पर आरूढ़ हुए और द्वारिका नगरी में स्थित अपने राजप्रासाद की ओर चल पड़े। उधर उस सोमिल ब्राह्मण के मन में दूसरे दिन सूर्योदय होते ही इस प्रकार विचार उत्पन्न हुआनिश्चय ही कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्टनेमि के चरणों में वंदन करने के लिये गये होंगे । भगवान तो सर्वज्ञ हैं उनसे कोई बात छिपी नहीं है। उन प्रभु से गजसुकुमाल की मृत्यु सम्बन्धी मेरे कुकृत्य का अरिष्टनेमि से उन्होंने सब वृत्तान्त जान लिया होगा, (आद्योपान्त) पूर्णत: विदित कर लिया होगा, यह सब भगवान से स्पष्ट समझ सुन लिया होगा । अर्हन्त अरिष्टनेमि ने अवश्यमेव कृष्ण वासुदेव को यह सब कुछ बता दिया होगा। ___“तो ऐसी स्थिति में कृष्ण वासुदेव रुष्ट होकर मुझे न मालूम किस प्रकार की कुमौत से मारेंगे।" ऐसा विचार कर वह डरा और नगर से कहीं दूर भागने का निश्चय किया। उसने सोचा कि श्री कृष्ण तो राजमार्ग से लौटेंगे। इसलिए मैं किसी गली के रास्ते निकल भागूं और उनके लौटने से पूर्व ही निकल जाऊँ। ऐसा सोच कर वह अपने घर से निकला और गली के रास्ते से भागा। ___इधर कृष्ण वासुदेव भी अपने लघु सहोदर भाई गजसुकुमाल मुनि की अकाल-मृत्यु के शोक से विह्वल होने के कारण राजमार्ग छोड़कर उसी गली के रास्ते से लौट रहे थे। जिससे संयोगवश कृष्ण वासुदेव के द्वारिका नगरी में प्रवेश करते समय उनके सामने ही वह आ निकला। सूत्र 29 मूल- तए णं से सोमिले माहणे कण्हं वासुदेवं सहसा पासित्ता भीए, ठियए चेव ठिइभेएणं कालं करेइ, करित्ता धरणितलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति सण्णिवडिए । तए णं से कण्हे वासुदेवे सोमिलं माहणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी-एस णं भो देवाणुप्पिया ! से सोमिले माहणे अपत्थिय पत्थिए जाव परिवज्जिए। जेण ममं सहोयरे कणीयसे भायरे गयसुकुमाले अणगारे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविए, त्ति कट्ट सोमिलं माहणं पाणेहिं कड्ढावेइ, कड्ढावित्ता, तं भूमिं पाणिएणं अब्भुक्खावेइ, अब्भुक्खावित्ता, जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए सयं गिहं अणुप्पविटे। एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते।
SR No.034358
Book TitleAntgada Dasanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size2 MB
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