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________________ परिशिष्ट-5] 253} परिशिष्ट-5 संस्तार-पौरुषी सूत्र अणुजाणह परमगुरु!, गुरुगुणरयणेहिं मंडियसरीरा। बहुपडिपुण्णा पोरिसी, राइयसंथारए ठामि ।।1।। (संथारा के लिए आज्ञा) हे श्रेष्ठ गुणरत्नों से अलंकृत परमगुरु! आप मुझे संथारा करने की आज्ञा दीजिए। एक प्रहर परिपूर्ण बीत चुका है, इसलिए मैं रात्रि = संथारा करना चाहता हूँ। संथारा करने की विधि अणुजाणह संथारं, बाहुवहाणेण वामपासेणं । कुक्कुडि-पायपसारण, अतरंत पमज्जए भूमिं ।।2।। संकोइए संडासा, उवटुंते य काय-पडिलेहा। दव्वाई उवओगं, उसासनिरंभणालोए ।। 3 ।। (संथारा करने की विधि) मुझको संथारा की आज्ञा दीजिए। (संथारा की आज्ञा देते हुए गुरु उसकी विधि का उपदेश देते हैं।) मुनि बाई भुजा को तकिया बनाकर बाई करवट से सोवे और मुर्गों की तरह पाँव पर पाँव करके सोने में यदि असमर्थ हो तो भूमि का प्रमार्जन कर उस पर पाँव रखे। दोनों घुटनों को सिकोड़कर सोवे । करवट बदलते समय शरीर की प्रतिलेखना करे । जागने के लिए द्रव्यादि के द्वारा आत्मा का चिन्तन करे-मैं कौन हूँ और कैसा हूँ ? इस प्रश्न का चिन्तन करना द्रव्य चिन्तन है। मेरा क्षेत्र कौनसा है ? यह विचार करना क्षेत्र चिन्तन है । मैं प्रमाद रूप रात्रि में सोया पड़ा हूँ अथवा अप्रमत्त भाव रूप दिन में जागृत हूँ? यह चिन्तन काल चिन्तन है । मुझे इस समय लघुशंका आदि द्रव्य बाधा और राग = द्वेष आदि भाव बाधा कितनी है ? यह विचार करना भाव चिन्तन है। इतने पर भी यदि अच्छी तरह निद्रा दूर न हो तो श्वास को रोककर उसे दूर करें और द्वार का अवलोकन करे अर्थात् दरवाजे की ओर देखे। मंगल सूत्र चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं । साहु मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं ।।4।।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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