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________________ परिशिष्ट-4] 239) है। उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 30 तथा आवश्यक सूत्र का पाठ तस्स उत्तरीकरणेणं.... पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए ठामि काउसग्गं ।' कर्म-निर्जरा के लिए, कर्मनाश के लिए कायोत्सर्ग होता है। कायोत्सर्ग का प्रयोजन कर्मनाश, दुःखमुक्ति या मोक्षप्राप्ति है काउसग्ग तओ.... सव्वदुक्ख विमोक्खणं । काय + उत्सर्ग = काया की आसक्ति का त्याग । निःसंगता, अनासक्ति, निर्भयता को हृदय में रमाकर देह, लालसा अथवा ममत्व का त्याग करना । वैसे कायोत्सर्ग एवं कायक्लेश दोनों में ही शरीर की आसक्ति को छोड़ना पड़ता है। लेकिन कायोत्सर्ग (भाव कायोत्सर्ग) में पूर्णरूपेण ममत्व का त्याग होता है, तभी जाकर धर्मध्यान, शुक्लध्यान की प्राप्ति होती है। इसमें कषाय त्याग भी जरूरी है, तभी भाव कायोत्सर्ग कहा जायेगा । कायोत्सर्ग के 2 भेद होते हैं-1. द्रव्य 2. भाव। कायोत्सर्ग तप 4 प्रकार का 1. उत्थित उत्थित 2. उत्थित निविष्ट 3. उपविष्ट निविष्ट 4. उपविष्ट उत्थित भी होता है। कायक्लेश बाह्य तप है । बाह्य तप कर्मों की पूर्ण निर्जरा कराने में सक्षम नहीं है । आभ्यन्तर तप के बिना अकेला बाह्यतप पूर्ण निर्जरा कराने में असमर्थ है। कायक्लेश तप का प्रयोजन अनेकानेक आसनों द्वारा ध्यान की योग्यता संपादित करना है। अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि कायक्लेश का प्रयोजन कायोत्सर्ग (भाव) की प्राप्ति के लिए ही है । बाह्य तप आभ्यन्तर तप के लिए है। शास्त्र सम्मत रीति से काया अर्थात् शरीर को क्लेश पहुँचाना कायक्लेश तप है। भगवती सूत्र शतक 25 उद्देशक 7 स्थानस्थितिक, उत्कुटकासनिक आदि कष्टप्रद आसन करना कायक्लेश तप है। (औपपातिक सूत्र, तप विवेचन) इसमें भी आसक्ति तो छूटती है, लेकिन शरीर की। भीतर कषायासक्ति को छोड़ने के लिए उसे कायोत्सर्ग का आधार लेना ही पड़ता है, अतः आंशिक ममत्व-त्याग होता है। कायक्लेश तप 13 प्रकार का होता है। 4. श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि में भेदश्रद्धा- "तर्क अगोचर सद्दहो, द्रव्य धर्म, अधर्म, केई प्रतीतो युक्ति सुं, पुण्य पाप सकर्म । तपचारित्र ने रोचवो कीजे तस अभिलाष, श्रद्धा प्रत्यय रुचि तिहुं बिन आगम भाष।।" धर्मास्तिकाय ने इस जीव को बहुत भटकाया है, पूरा लोक घुमाया है। अधर्मास्तिकाय ने इस जीव को अनन्त बार स्थिर किया है। आकाशास्तिकाय ने इस जीव को अनन्त स्थान दिये हैं। काल द्रव्य ने इस शरीर को बहुत मारा और नष्ट किया है। जीवास्तिकाय वर्ण नहीं, गंध नहीं,
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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