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________________ उत्तर परिशिष्ट-4] 211} आवश्यक सूत्र में आए हुए ‘इच्छामि ठामि' के पाठ में भी “तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्डं महव्वयाणं छण्हं जीव निकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाण जोगाणं' आदि रूप शब्दावली है। इसमें तीन गुप्तियाँ, पाँच महाव्रत, सात पिण्डैषणाएँ, आठ प्रवचन माताएँ, नौ ब्रह्मचर्य की गुप्तियाँ आदि साधुजीवन सम्बन्धी पाठ हैं। आवश्यक सूत्र में होने पर भी श्रावक इन पाठों का उच्चारण नहीं करके इनके स्थान पर श्रावक योग्य पाठ बोलता है, यथा“तिण्हं गुणव्वयाणं, चउण्हं सिक्खावयाणं पंचण्हमणुव्वयाणं बारसविहस्स सावग्गधम्मस्स" का उच्चारण करता है। अत: आवश्यक सत्र में है. ऐसा कहकर साध प्रतिक्रमण के पाठों को श्रावक प्रतिक्रमण में बोलना कतई योग्य नहीं है। प्रश्न 182. श्रमणसूत्र को श्रावक प्रतिक्रमण में बोलना सही मानना पड़ेगा क्योंकि किसी-किसी सम्प्रदाय में यह पाठ उच्चरित किया जाता रहा है। यह पाठ बोलना कब से शुरू हुआ इसका इतिहास तो ज्ञात नहीं है। प्राप्त प्रमाणों से इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल में यह परम्परा नहीं थी। प्रवचनसारोद्धार की गाथा 175 की टीका करते हुए कहा है कि“सुत्तं तं सामायिकादिसूत्रं भणति साधुः स्वकीयं श्रावकस्तु स्वकीयम्” इसमें स्पष्ट बताया है कि साधु अपना सूत्र यानी श्रमण सूत्र कहे तथा श्रावक अपना सूत्र यानी श्रावक सूत्र कहे। यदि साधु एवं श्रावक को एक ही पाठ बोलना होता तो दोनों अपना-अपना सूत्र बोलें ऐसा कथन क्यों होता? क्रान्तिकारी आचार्य धर्मसिंहजी म.सा., जो कि दरियापुरी सम्प्रदाय के पूर्व पुरुष रहे हैं, ने भी श्रमण सूत्र का श्रावक प्रतिक्रमण में होना अनुचित बतलाया है। उनके वाक्य इस प्रकार हैं"श्रावक ना प्रतिक्रमण मां श्रमण सूत्र बोलवा नी जरूर नथी कारण के श्रमण सूत्र साधुओं माटे छे। अने श्रावक ने प्रत्याख्यान (नवकोटिए) नथी तेनु प्रतिक्रमण करवानुं होय नही' किसी-किसी सम्प्रदाय द्वारा किए जाने मात्र से यदि श्रमण सूत्र को श्रावक प्रतिक्रमण में कहना वैधानिक मान लिया जाए तो माइक आदि विद्युतीय साधनों के प्रयोग को भी वैधानिक मानना पड़ सकता है, क्योंकि वह भी कुछेक सम्प्रदायों द्वारा आचरित है। आगमिक आधारों को प्रमुखता देने वाला साधुवर्ग एवं श्रावक वर्ग किसी भी परम्परा को तभी महत्त्व दे सकता है, जब वह आगम से अविरुद्ध हो। श्रावक प्रतिक्रमण में श्रमण सूत्र बोलना
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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