SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट- 4 ] प्रश्न 141 'संलेखना' किसे कहते हैं ? उत्तर 191} उत्तर जीवन का अन्तिम समय आया जान कर कषायों एवं शरीर को कृश करने के लिए जो तपविशेष किया जाता है, उसे संलेखना कहते हैं। संलेखना कर 'संथारा' ग्रहण किया जाता है। संथारा अपनी शक्ति, सामर्थ्य एवं परिस्थिति के अनुसार तिविहार अथवा चौविहार दोनों प्रकार से किया जा सकता है। प्रश्न 142. संथारा ग्रहण करने की क्या विधि है एवं उसमें किन-किन बातों का ध्यान रखने से उसकी सम्यक्तया आराधना की जा सकती है? मृत्यु के समीपस्थ होने पर ज्ञान, दर्शन, चारित्र की वृद्धि में असमर्थ होने पर श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविका संथारा ग्रहण करके अपने तीसरे मनोरथ को पूर्ण करते हैं। संथारे की विधि एवं इसमें ध्यान रखने योग्य विशेष बातें संक्षिप्त में निम्न प्रकार से है 1. संथारा यथा संभव शांत एवं नीरव स्थान में करना चाहिए। बैठते समय पूर्व या उत्तर दिशा सम्मुख रहनी चाहिए तथा सोते समय पैर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होने चाहिए। 2. संथारे में मुखवस्त्रिका पहनी हुई रहनी चाहिए। वस्त्र सादे होने चाहिए। आभूषण पहने हुए नहीं होने चाहिए। आसन संयमानुकूल होना चाहिए। पाट-पाटला सुप्रतिलेख्य होना चाहिए। 3. संथारा करने वाले को पंखा, कलूर, ए.सी. का उपयोग नहीं करना चाहिए। लाइट में पढ़ना नहीं चाहिए। सचित्त पृथ्वी, सचित्त पानी, अग्निकाय (सेल की घड़ी, मोबाईल आदि इसमें शामिल हैं), वनस्पतिकाय का संघट्टा नहीं होना चाहिए। 4. संधारा करने वाली स्त्री को पुरुष स्पर्श न करे एवं पुरुष को स्त्री स्पर्श नहीं करे। 5. संथारे वाले की सेवा करने वाले को संवर पचक्ख करके ही सेवा करनी चाहिए। 6. तिविहार संथारे वाले के निमित्त से धोवन पानी या गरम पानी बनाना नहीं चाहिए। सहज रूप से बने धोवन या गरम पानी को यतनापूर्वक लाना चाहिए ताकि मार्गवर्ती जीवों की हिंसा न हो। 7. संथारे वाले का मलमूत्र, कफ, उल्टी आदि भी निरवद्य जीव रहित स्थान में पठन चाहिए। 8. संथारे वाले को स्नान नहीं करना चाहिए। 9. संथारे वाले को उभयकाल प्रतिक्रमण कराना चाहिए।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy