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________________ { 162 [आवश्यक सूत्र प्रात: सायं छह आवश्यक करते (प्रतिक्रमण करते) इच्छामि खमासमणो' के पाठ से छह-छह आवर्तन देते हुए वन्दना करना उत्कृष्ट वन्दना कहलाती है। प्रश्न 18. तिक्खुत्तो के पाठ से तीन बार वन्दना करने का क्या प्रमाण है? उत्तर भगवतीसूत्र शतक 3 उद्देशक 1 (सूत्र संख्या 40 से 42 तक, पृष्ठ संख्या-288-289, युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी कृत) में उल्लेख है कि बलिचंचा राजधानी के अनेक असुरों, देवों तथा देवियों ने तामली तापस की तिक्खुत्तो के पाठ से आवर्तन देते हुए वन्दना की। दूसरी बार तथा तीसरी बार भी इनके द्वारा इसी प्रकार आवर्तन देते हुए तिक्खुत्तो के पाठ से वन्दना की गई। इससे स्पष्ट है कि तीन बार वन्दना करने की प्राचीन परम्परा रही है, जन-सामान्य में यही विधि प्रचलित रही है। इसके साथ ही हमारे गुरु भगवन्त सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन तथा सम्यक चारित्र इन तीन रत्नों के धारक होते हैं। इन तीन रत्नों के प्रति आदर-बहुमान प्रकट करने तथा वे तीन रत्न हमारे जीवने में भी प्रकट हों, इसलिए भी तीन बार वन्दना की जाती है। प्रश्न 19. तिक्खुत्तो के पाठ से वन्दना करते समय आवर्तन किस प्रकार दिये जाने चाहिए? उत्तर तिक्खुत्तो का पाठ बोलते तिक्खुत्तो शब्द के उच्चारण के साथ ही दोनों हाथ मस्तक (ललाट) के बीच में रखने चाहिए। आयाहिणं शब्द के उच्चारण के साथ अपने दोनों हाथ अपने मस्तक के बीच में से अपने स्वयं के दाहिने (Right) कान की ओर ले जाते हए गले के पास से होकर बायें (Left) कान की ओर घुमाते हुए पुन: ललाट के बीच में लाना चाहिए। इस प्रकार एक आवर्तन पूरा करना चाहिए। इसी प्रकार से पयाहिणं और करेमि शब्द बोलते हुए भी एक-एक आवर्तन पूरा करना, इस प्रकार तिक्खुत्तो का एक बार पाठ बोलने में तीन आवर्तन देने चाहिए। तीनों बार तिक्खुत्तो के पाठ से इसी प्रकार तीन-तीन आवर्तन देने चाहिए। प्रश्न 20. आवर्तन देने की विधि को सरल तरीके से कैसे समझ सकते हैं? आवर्तन देने की विधि को सरलता से इस प्रकार समझा जा सकता है कि जैसे हम उत्तर या पूर्व दिशा में मुँह करके खड़े हैं अथवा गुरुदेव के सम्मुख खड़े हैं, तब हमारे सामने घड़ी मानकर जिस प्रकार घड़ी में सूई घूमती है ठीक इसी प्रकार हमें भी आवर्तन देने चाहिए। जिस प्रकार मांगलिक कार्यों में आरती उतारी जाती है, मन्दिरों में परिक्रमा दी जाती हैं, इसी क्रम से आवर्तन देने चाहिए। अन्य भी लौकिक उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि जैसे-घट्टी चलाने की क्रिया, चरखा घुमाने की क्रिया, रोटी बेलने का क्रम, वाहनों की गति दर्शाने वाला मीटर, सूर्य के घूमने का तरीका आदि-आदि जिस क्रम से आगे बढ़ता है, ठीक इसी प्रकार आवर्तन हमें अपने ललाट के मध्य से प्रारंभ करते हुए अपने दाहिनी ओर ले जाते हुए देने चाहिए। उत्तर
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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