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________________ परिशिष्ट - 2 ] 143) धोने, तेल आदि की मालिश करने का, उबटन करने का, स्नान करने के जल का, वस्त्र पहनने का, चंदनादि का लेपन करने का, पुष्प सूंघने का, आभूषण पहनने का, धूप जलाने का, दूध आदि पीने का, चावल गेहूँ आदि का, मूँग आदि की दाल का, विगय (दूध, दही, घी, गुड़ आदि) का, शाक-भाजी कका, मधुर रस का, जीमने का, पीने के पानी का, इलायची लौंग इत्यादि मुख को सुगंधित करने वाली वस्तुओं का, घोड़ा, हाथी, रथ आदि सवारी का, जूते आदि पहनने का, शय्या - पलंग आदि का, सचित्त वस्तु के सेवन का तथा इनसे बचे हुए बाकी के सभी पदार्थों का जो परिमाण किया है, उसके सिवाय उपभोग तथा परिभोग में आने वाली वस्तुओं का त्याग करता हूँ। - उपभोग- परिभोग दो प्रकार का है भोजन (भोग्य पदार्थ) संबंधी और कर्म (जिन व्यापारों से भोग्य पदार्थों की प्राप्ति होती है उन वाणिज्य ) संबंधी । भोजन संबंधी उपभोग- परिभोग के पाँच और कर्म संबंधी उपभोग परिभोग के पन्द्रह, इस तरह इस व्रत के कुल बीस अतिचार होते हैं। वे निम्न प्रकार से हैं, उनकी आलोचना करता हूँ। यदि मैंने - 1. मर्यादा से अधिक सचित्त वस्तु का आहार किया हो, 2. सचित्त वृक्षादि साथ लगे हुए गोंद आदि पदार्थों का आहार किया हो, 3. अग्नि से बिना पकी हुई वस्तु का भोजन किया हो, 4. अधपकी वस्तु का भोजन किया हो, 5. तुच्छ औषधि का भक्षण किया हो तथा पन्द्रह कर्मादान का सेवन किया हो तो मैं उनकी आलोचना करता हूँ और चाहता हूँ कि मेरा सब पाप निष्फल हो। एक बार उपयोग में आने वाली वस्तु आहार आदि की गणना उपभोग में और बार-बार काम में आने वाली वस्त्र आदि वस्तु परिभोग में गिनी जाती है। जिनसे तीव्रतर कर्मों का आदान-ग्रहण बंधन होता है, वे व्यवसाय या धंधे कर्मादान हैं। उनकी संख्या पन्द्रह है और अर्थ इस प्रकार है 1. इंगालकर्म - लकड़ियों के कोयले बनाने का, भड़भूंजे का, कुम्हार का, लौहार का, सुनार का, ठठेरे- कसेरे का और ईंट पकाने का, धंधा करना 'अंगार कर्म' कहलाता है। 2. वनकर्म-वनस्पतियों के छिन्न या अछिन्न पत्तों, फूलों या फलों को बेचना अनाज को दलने या पीसने का धंधा करना 'वनजीविका' है। 3. शकटकर्म - छकड़ा, गाड़ी आदि या उनके पहिया आदि अंगों को बनाने, बनवाने, चलाने तथा बेचने का धंधा करना 'शकटजीविका' है। 4. भाटककर्म-गाड़ी, बैल, भैंसा, गधा, ऊँट, खच्चर आदि पर भार लादने की अर्थात् इनमें भाड़ा किराया कमाकर आजीविका चलाना 'भाटकजीविका' है। 5. स्फोटकर्म - तालाब, कूप, बावड़ी आदि खुदवाने और पत्थर फोड़ने तोड़ने आदि पृथ्वीकाय प्रचुर हिंसा रूप कर्मों से आजीविका चलाना 'स्फोटजीविका है। की
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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