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________________ परिशिष्ट-1] 129} ऐसे मुनिराज महाराज आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो हे मुनिराज महाराज ! मेरा अपराध बारम्बार क्षमा करिये । मैं हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से 1008 बार वन्दना नमस्कार करता हूँ। तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि, वंदामि, नमसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि ।। आप मांगलिक हो, आप उत्तम हो, हे स्वामिन् ! हे नाथ! आपका इस भव, पर भव, भव भव में सदा काल शरण होवे। अनन्त चौबीसी का पाठ मूल अनन्त चौबीसी जिन न, सिद्ध अनन्ता क्रोड़। केवल ज्ञानी गणधरा, वन्दूँ बे कर जोड़।।1।। दोय क्रोड़ केवल धरा, विहरमान जिन बीस । सहस्र युगल क्रोड़ी नमूं, साधु न। निश दीस ।।2।। धन साधु धन साध्वी, धन धन है जिन-धर्म । ये सुमर्या पातक झरे, टूटे आठों कर्म ।।3।। अरिहन्त सिद्ध समरूँ सदा, आचारज उपाध्याय । साधु सकल के चरण को, वन्दूँ शीश नमाय ।।4।। लोभी गुरु तारे नहीं, तिरे सो तारणहार । जो तूं तिरणो चाह तो, निर्लोभी गुरुधार ।। 5 ।। कहवा में आवे नहीं, अवगुण भरिया अनन्त । लिखवाँ मैं कैसे लिखू, जानो श्री भगवन्त ।।6।। अंगुष्ठे अमृत बसे, लब्धि तणा भण्डार । श्री गुरु गौतम सुमरिये, वांछित फल दातार ।।7 ।। चौरासी लाख जीवयोनि का पाठ सात लाख पृथ्वी काय, सात लाख अप्काय, सात लाख तेउकाय, सात लाख वायुकाय, दस लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, चौदह लाख साधारण वनस्पतिकाय, दो लाख बेइन्द्रिय, दो लाख तेइन्द्रिय, दो लाख चउरिन्द्रिय, चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाख तिर्यंच पंचेन्द्रिय, चौदह लाख मनुष्य, ऐसे चार
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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