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________________ परिशिष्ट-1] 123} सिद्धों के 14 प्रकार-(1) स्त्रीलिङ्ग सिद्ध, (2) पुरुषलिङ्ग सिद्ध, (3) नपुंसकलिङ्ग सिद्ध, (4) स्वलिङ्ग सिद्ध, (5) अन्यलिङ्ग सिद्ध, (6) गृहस्थलिङ्ग सिद्ध, (7-9) जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध, (10-12) उर्ध्वलोक, अधोलोक, तिर्यक्लोक में होने वाले सिद्ध, (13) समुद्र एवं (14) जलाशय में होने वाले सिद्ध। 15 भेदे सिद्ध-सिद्ध होने के पश्चात् सभी आत्माएँ समान होती है। उनमें कोई भेद नहीं होता। किन्तु सिद्धों की सांसारिक अवस्था (पूर्वावस्था) की दृष्टि से उनमें पन्द्रह भेद माने जाते हैं। (1) तीर्थ सिद्ध-साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ की स्थापना के पश्चात् जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की, जैसे गौतम स्वामी आदि। (2) अतीर्थ सिद्ध-चार तीर्थ स्थापना के पहले जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की जैसे-मरुदेवी माता । (3) तीर्थङ्कर सिद्ध-जिन्होंने तीर्थङ्कर की पदवी प्राप्त करके मुक्ति प्राप्त की। जैसे-भगवान ऋषभदेव आदि 24 तीर्थङ्कर । (4) अतीर्थङ्कर सिद्ध-जिन्होंने तीर्थङ्कर की पदवी प्राप्त नहीं करके मोक्ष प्राप्त किया। जैसे-गौतम अणगार आदि। (5) स्वयंबुद्ध सिद्ध-बिना उपदेश के पूर्व जन्म के संस्कार जागृत होने से जिन्हें ज्ञान हुआ और सिद्ध हुए। जैसे-कपिल केवली । (6) प्रत्येक बुद्ध सिद्ध-किसी पदार्थ का विचार करते-करते बोध प्राप्त हुआ और केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया जैसे करकण्डु राजा । (7) बुद्धबोधित सिद्ध-गुरु के उपदेश से ज्ञानी होकर जिन्होंने मुक्ति प्राप्त की, जैसे-जम्बू स्वामी। (8) स्त्रीलिङ्ग सिद्ध-स्त्री पर्याय (शरीर) से सिद्ध होने वाले। जैसे-चन्दनबाला । (9) पुरुषलिङ्ग सिद्धपुरुष पर्याय (शरीर) से सिद्ध होने वाले। जैसे-अर्जुनमाली। (10) नपुंसकलिङ्ग सिद्ध-नपुंसक पर्याय (शरीर) से सिद्ध होने वाले। भगवती सूत्र के आधार से पुरुष नपुंसक केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्ध हो सकता है। (11) स्वलिङ्ग सिद्ध-रजोहरण मुखवस्त्रिका आदि वेष में जिन्होंने मुक्ति पाई, जैसे-जैन साधु । (12) अन्यलिङ्ग सिद्ध-जैन वेष से अन्य संन्यासी आदि के वेषों में भाव संयम द्वारा केवलज्ञान उपार्जित कर वेष परिवर्तन करने जितना समय न होने पर जिन्होंने मुक्ति पाई. जैसे-वल्कल चीरी। (13) गहस्थलिङ्ग सिद्धगृहस्थ के वेश में जिन्होंने भाव संयम प्राप्त कर केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्ति प्राप्त की। (14) एक सिद्धएक समय में एक ही जीव मोक्ष में जावे । (15) अनेक सिद्ध-एक समय में अनेक जीव मोक्ष में जावे । एक समय में उत्कृष्ट 108 तक मोक्ष में जा सकते हैं। आचार्य-पद-भाव-वन्दना तीजे पद णमो आयरियाणं' श्री आचार्य जी महाराज 36 गुण करके विराजमान, पाँच महाव्रत पाले, पाँच आचार पाले, पाँच इन्द्रियाँ जीते, चार कषाय टाले, नववाड़ सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य पाले, पाँच समिति तीन गुप्ति शुद्ध आराधे । ये 36 गुण करके सहित हैं। आठ सम्पदा-1. आचार सम्पदा, 2. श्रुत सम्पदा, 3.
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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