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________________ परिशिष्ट-1] 105} 2. वचन गुप्ति-के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं-स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा. राजकथा इन चार विकथाओं में से कोई विकथा की हो, तथा असंयमी को आओ सा, पधारो सा, कहा हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। 3. काय गुप्ति-के विषय में जो कोई अतिचार लगा हो तो आलोउं-हालताँ, चालताँ, उठताँ, बैठताँ, पूँजताँ, पडिलेहताँ, काया अयतना से, असावधानी से प्रवाई हो, बिना देखे बिना पूँजे हाथ-पैर पसारिया हो, संकोचिया हो, ओठीगण (दिवार आदि का सहारा) लिया हो, दिवस सम्बन्धी कोई पाप दोष लगा हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। दस सामाचारी (1) आवस्सही- आवश्यक कार्य के लिए स्थानक के बाहर जाते समय (आवस्सिया) साधु को आवस्सही-आवस्सही' कहना चाहिए। यह आवश्यकी है। निस्सीहि- आवश्यक कार्य पूर्ण कर स्थानक में प्रवेश करते समय ‘निस्सीहि-निसीहि' कहे। (निसीहिया) मैं बाहर के कार्य से निवृत्त हो आया हूँ। यह नैषधिकी है। आपुच्छणा- किसी कार्य को करने के लिए पहले गुरुदेव से उस कार्य हेतु पूछना, यह आपुच्छना है। पडिपुच्छणा- अन्य मुनियों के लिए कार्य करने हेतु बार-बार पूछना, पडिपुच्छना है। छन्दना- स्वयं के लाये हुये आहार या अपने विभाग में आये हुये आहार को अन्य गुरुजनों व साधुओं को उसे ग्रहण करने के लिए निवेदन करना, छन्दना है। इच्छाकार- गुरुदेव आपकी इच्छा होवे तो मैं स्वाध्याय करूँ या वैयावृत्त्य । इस प्रकार पूछने को इच्छाकार कहते हैं। मिच्छाकार- संयम पालते हुये कोई विपरीत आचरण हो जावे तो उस पाप के लिए पश्चात्ताप करता हुआ साधक मिच्छा मि दुक्कडं कहे । यह मिच्छाकार है। तहक्कारो- गुरुदेव की किसी कार्य करने हेतु आज्ञा मिलने पर या उपदेश देने पर तहत् (तहत्ति) जैसा आप फरमाते हैं वही तथ्य है, कहना तथाकार समाचारी है। (9) अब्भुट्ठाणं- गुरुजनों व रत्नाधिकों की विनय भक्ति करना एवं बाल वृद्ध ग्लान साधुओं को यथोचित आहारादि लाकर देना अभ्युत्थान नामक समाचारी है। (10) उपसंपया- ज्ञानादि प्राप्ति के लिए अन्य गच्छ के आचार्य के पास रहना ‘उपसम्पदा' समाचारी कहलाती है। 1. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन 26
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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