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________________ परिशिष्ट-1] 97} 7. पाँचवें आवश्यक की आज्ञा-प्रायश्चित्त का पाठ, नवकार मंत्र, करेमि भंते, इच्छामि ठामि, तस्सउत्तरी, लोगस्स का (सामान्य दिनों में 4, पक्खी को 8, चौमासी को 12 तथा संवत्सरी को 20 लोगस्स का) काउस्सग्ग करें, काउस्सग्ग शुद्धि का पाठ एवं लोगस्स प्रकट में, इच्छामि खमासमणो के पाठ से विधिवत् दो बार वन्दना, तिक्खुत्तो के पाठ से तीन बार वन्दना। 8. छठे आवश्यक की आज्ञा-पच्चक्खाण का पाठ, प्रतिक्रमण समुच्चय (अन्तिम पाठ), नमोत्थुणं दो बार, तिक्खुत्तो के पाठ से तीन बार वन्दना। ।।श्रमण प्रतिक्रमण की विधि समाप्त ।। काउस्सग्ग-शुद्धि (अतिचार-शोधन) काउस्सग्ग में आर्तध्यान, रौद्रध्यान ध्याया हो, धर्मध्यान, शुक्लध्यान नहीं ध्याया हो तथा काउस्सग्ग में मन, वचन और काया चलित हुए हों तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। नमोत्थु णं सुत्तं (शक्रस्तव-सूत्र) मूल- नमोत्थु णं, अरिहंताणं, भगवंताणं, आइगराणं, तित्थयराणं, सयं संबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवर-पुंडरियाणं, पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराणं, अभय-दयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, जीवदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवर-चाउरंतचक्कवट्टीणं, दीवोत्ताणं, सरणगइ-पइट्ठाणं अप्पडिहयवरनाणदसणधराणं, विअट्टछउमाणं, जिणाणं, जावयाणं, तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोयगाणं, सव्वण्णूणं, सव्वदरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति, सिद्धिगइनामधेयं, ठाणं संपत्ताणं' नमो जिणाणं जिअभयाणं। 1. दूसरे नमोत्थुणं में ठाणं संपत्ताणं' के स्थान पर 'ठाणं संपाविउकामाणं' बोलें, शेष पूर्ण पाठ पहले की तरह बोलें।
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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