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________________ 71} चतुर्थ अध्ययन - प्रतिक्रमण] महाऋद्धि के स्वामी देवता है उनके बलवीर्य के अवगुणवाद बोले । 30. अज्ञानी जीव, लोगों में पूजा प्राप्त करने के लिए चार जाति के देवताओं को न देखते हुए भी कहे कि “मैं देव को देखता हूँ।” तो महामोहनीय कर्म बाँधे। इकत्तीसवें बोले-सिद्ध भगवान के इकत्तीस गुण-आठ कर्मों की प्रकृति नष्ट होने पर इकत्तीस गुण प्रकट होते हैं। जैसे-ज्ञानावरणीय की 5 प्रकृति, दर्शनावरणीय की 9 प्रकृति, वेदनीय की 2 प्रकृति, मोहनीय की 2 प्रकृति, आयुष्य की 4 प्रकृति, नाम की 2 प्रकृति, गोत्र की 2 प्रकृति, अन्तराय की 5 प्रकृति, इन 31 प्रकृतियों के क्षय होने से 31 गुण प्रकट होते हैं। बत्तीसवें बोले-बत्तीस प्रकार का योग संग्रह-योग-संग्रह-युज्यन्ते इति योग: मनोवाक्कायव्यापारः ते चेह प्रशस्ता एव विवक्षित: अर्थात् मन, वचन और काया की प्रवृत्ति को योग कहते हैं। शुभ और अशुभ भेद से योग के 2 प्रकार हैं। अशुभ योग से निवृत्ति और शुभ योग में प्रवृत्ति ही संयम है। प्रस्तुत सूत्र में शुभ प्रवृत्ति रूप योग ही ग्राह्य है। योग संग्रह की साधना में जहाँ कहीं भूल हुई हो, उसका प्रतिक्रमण किया जाता है। 1. लगे हुए पापों का प्रायश्चित्त लेने का संग्रह करे। 2. दूसरे के लिए हुए प्रायश्चित्त को किसी और को नहीं कहने का संग्रह करे । 3. विपत्ति आने पर भी धर्म में दृढ़ रहने का संग्रह करे । 4. निरपेक्ष तप करने का संग्रह करे । 5. सूत्रार्थ-ग्रहण करने का संग्रह करे। 6. शुश्रूषा (शरीर की शोभा) टालने का संग्रह करे। 7. अज्ञात कुल की गोचरी करने का संग्रह करे। 8. निर्लोभी होने का संग्रह करे। 9. बावीस परीषह सहने का संग्रह करे। 10. साफ दिल (सरलता) रखने का संग्रह करे। 11. सत्य संयम रखने का संग्रह करे। 12. सम्यक्त्व निर्मल रखने का संग्रह करे। 13. समाधि सहित रहने का संग्रह करे। 14. पंचाचार पालने का संग्रह करे। 15. विनय करने का संग्रह करे। 16. धैर्य रखने का संग्रह करे। 17. वैराग्य भाव रखने का संग्रह करे । 18. शरीर को स्थिर रखने का संग्रह करे। 19. विधि पूर्वक अच्छे अनुष्ठान करने का संग्रह करे। 20. आस्रव रोकने का संग्रह करे। 21. आत्मा के दोष टालने का संग्रह करे । 22. सभी विषयों से विमुख रहने का संग्रह करे। 23. अहिंसा आदि मूल गुण रूप प्रत्याख्यान करने का संग्रह करे। 24. द्रव्य से उपधि, भाव से गर्वादि त्यागने का (उत्तरगुण धारने का) संग्रह करे। 25. अप्रमादी बनने (व्युत्सर्ग-ममता त्याग) का संग्रह करे। 26. काले-काले (समय पर) क्रिया करने का संग्रह करे। 27. धर्मध्यान ध्याने का संग्रह करे। 28. संवर करने का संग्रह करे। 29. मारणान्तिक रोग होने पर भी मन को क्षुभित नहीं बनाने का संग्रह करे। 30. स्वजनादि को त्यागने का संग्रह करे। 31. लिये हुए प्रायश्चित्त को पार लगाने का संग्रह करे। 32. आराधक पण्डित-मरण होवे वैसी आराधना करने का संग्रह करे। 33. आशातना-'आय: सम्यग्दर्शनाद्यवाप्तिलक्षणस्तस्यशातना खण्डनं निरुक्तादाशातना'
SR No.034357
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size2 MB
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